PATNA : सावन में रिमझिम फुहारों, बागों में झूला झूलती कजरी गाती महिलाएं अपने पिया के प्रति कभी आभार तो कभी संवेदना तो कभी विरह को गीत गाकर अभिव्यक्त करती हैं। एक दौर था जब यहां गांवो में बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच झूला-झूलते हुई महिलाएं और लड़कियां मेहंदी रचाकर कजरी गाती थीं नृत्य करती थीं। और पति की दीर्घायु के लिए पूरे माह भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करती थीं। दैनिक जारगण आई नेक्स्ट आज 'परंपराओं का सावन' में छपरा, सहित भोजपुरी समाज के लोगों के बारे में बताने जा रहा है कि वह किस तरह से सावन उत्सव मनाते हैं

नृत्य करने की है परंपरा

कवि आलोक धन्वा ने बताया कि बारिश का आगमन इसी माह से होता है। मन में उल्लास और उमंग बढ़ने लगता है। छपरा, सीवान, और अंगिका समाज के सभी कुंवारी लड़कियां मन चाहे वर के लिए बागों में जाकर नृत्य कर झूला झूलती थीं और भगवान शिव से योग्य पति पाने की कामना करती थीं। ये माह कल्पना का माह होता है। इसलिए सच्चे मन से की गई कल्पना अवश्य पूर्ण हो जाता है।

कजरी गाकर करती थीं मन की बात

महिलाओं और लड़कियां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए कजरी गाकर अपनी मन की बात कजरी सुनकर पार्वती भी प्रसन्न होती हैं। जिससे खुश होकर भगवान शंकर मन की इच्छा पूर्ण करते हैं।

शाम को निकलती है टोली

भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए महिलाओं द्वारा धतूरे युक्त भांग की शर्बत से जलाभिषेक किया जाता है। पूजा के बाद शाम को महिलाएं टोली बनाकर पूरे इलाके में घूम-घूम कर बाबा का भजन गीत गाती हैं।

हर घरों में होती है शिव चर्चा

सावन के पहले दिन से ही भोजपुरी समाज के लोग मांस मछली खाना बंद कर देते हैं। भगवान शिव को खुश करने के लिए वह नियमित रुप से परिवार की मंगल कामना के लिए शिव चर्चा करते हैं।

सच्चे माह से जो भी भगवान शंकर की पूजा करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। नृत्य और कजरी गाने की परंपरा तो सदियों से चली आ रही है। हाथों मे मेहंदी रचाकर झूला-झूलने और कजरी गाती गाने की परंपरा तो अब विलुप्त हो चुकी है।

- आलोक धन्वा, कवि