- क्रोनिक किडनी डिजीज है साइलेंट किलर, नहीं है कोई स्पेसिफिक सिम्पटम्स

- अवेयरनेस की कमी से लगातार बढ़ रहे हैं केसेज, समय पर टेस्ट कराकर बचा जा सकता है

PATNA: क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक साइलेंट किलर के रूप में सामने आता है, क्योंकि इसका कोई स्पेसिफिक सिम्पटम्स नहीं होता है। जब तक इसके बारे में पता चलता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। तब तक किडनी डैमेज हो जाती है। यही वजह है कि 90 परसेंट केसेज में डायलिसिस सर्पोट या ट्रांसप्लांट तक की नौबत आ जाती है। इस स्टेज में डॉक्टरों के पास दूसरा ऑप्शन नहीं रह जाता है, जबकि शुरुआती स्टेज में पता चल जाए तो मेडिसीन आदि से ही इसपर काबू पाया जा सकता है.ऐसे में ट्रीटमेंट बहुत कॉस्टली है। लेकिन समय रहते अगर इसका टेस्ट कर लिया जाता है तो इससे बचा जा सकता है।

हर दस में एक है पेशेंट

हर दस में से एक पर्सन किसी न किसी किडनी डिजीज से ग्रस्त है। इससे समझा जा सकता है कि डिजीज और इसके प्रति अवेयरनेस में कितना गैप है। अवेयरनेस नहीं होने के कारण ही लोग इसकी स्क्रीनिंग नहीं कराते हैं।

डायबिटिक को अधिक खतरा

डॉ हेमंत ने बताया कि डायबिटीज और बीपी के पेशेंट को सीकेडी का सबसे अधिक खतरा है। इसके अलावा प्रेगनेंसी में यूरिनरी इन्फेक्शन के कारण किडनी डैमेज होती है।

सीकेडी के सिम्प्टम्स

वीकनेस और थकान महसूस होना, बीपी बढ़ा हुआ होना, सांस लेने में तकलीफ, एनीमिक होना

इन टेस्ट से होगी पहचान

पीएमसीएच में नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ हेमंत कुमार ने बताया कि कुछ जेनरल टेस्ट जो आम तौर पर हॉस्पीटल्स और छोटे-छोटे लैब में भी अवेलेबल है। कमी है तो बस अवेयरनेस की। यूरिन प्रोटीन और ब्लड क्रेटनिन टेस्ट और यूएसईआर या माइक्रो प्रोटीन टेस्ट कराने के बाद यह पता लग सकता है कि सीकेडी किस स्टेज पर है। यूरीन में प्रोटीन आना इसका सबसे बड़ा सिम्पटम है, जितना अधिक प्रोटीन आएगा यह उतना ही घातक स्तर पर होगा।

जितना एज उतना कन्सर्न

आज व‌र्ल्ड किडनी डे मनाया जा रहा है। इस बार थीम है-किडनी एज जस्ट लाइक यू। यानी जितनी अधिक एज उतने अधिक कन्सर्न। इस बारे में डॉ हेमंत का कहना है कि अधिक एज में किडनी की खास केयर करने की जरूरत है।

कैसे करें किडनी केयर

यह बीपी और सुगर के पेशेंट को अधिक होता है। ऐसे में अपने लाइफस्टाइल को व्यवस्थित करने की जरूरत है, इसलिए अगर बीपी को कंट्रोल रखा जाए और सुगर की रेग्युलर टेस्ट कराया जाए, तो इसकी परेशानियों से बचा जा सकता है। फल और सब्जियों में केमिकल का बढ़ता यूज इस डिजीज को और बढ़ा रहा है। आज कल बिना डॉक्टर की एडवाइस के पेन किलर लेने की हैबिट भी इसके लिए खतरनाक है। इन बातों का ध्यान अगर रखा जाए, तो फिर चिंता नहीं।

बिहार का कोई डाटा नहीं

बिहार जैसे स्टेट में सीकेडी का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है, इसलिए इसके बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है।