नाम है सुपरफास्ट और स्पीड 55 की

हमारा संडे की रात इंटरनेट से टिकट नहीं हो पाया था। रात को आईआरसीटीसी की साइट से टिकट की कोशिश की तो हैंग मिला। फिर तय हुआ काउंटर टिकट ही खरीदेंगे। हम करीब पौने बारह बजे मेरठ सिटी रेलवे स्टेशन पहुंच गए। इंक्वायरी की ओर बढ़े। काफी भीड़ थी। देहरादून जाने वाली सुपरफास्ट ट्रेन के बारे में पूछा तो बताया गया कि वीकली कोच्चिवेली-देहरादून सुपरफास्ट एक्सप्रेस (गाड़ी नंबर 12287) आने वाली है। हमने डिसाइड किया कि सुपरफास्ट का जनरल टिकट लेकर एसी में सफर करेंगे। देखते हैं पॉसिबल होता है कि नहीं। टिकट की लाइन में लग गए। लाइन तेजी से बढ़ रही थी। जल्द ही नंबर आ गया। मुज्जफरनगर तक के टिकट के बारे में पूछा तो 40 रुपए का एक टिकट था। दो टिकट लिया।

प्लेटफार्म नंबर-3

ट्रेन प्लेटफॉर्म-3 पर आने वाली थी। जैसे ही हम प्लेटफॉर्म पर पहुंचे एक वेंडर यात्री से बड़ी ही बद्तमीजी से बात कर रहा था। कुछ ही दूरी पर आरपीएफ के जवान भी खड़े थे। लेकिन कोई देखने, सुनने और टोकने वाला नहीं था। इतनी ही देर में राइट टाइम (शायद हमारी किस्मत अच्छी थी) कोच्चिवेली-देहरादून एक्सप्रेस आ गई। ट्रेन में कुछ बोगी ही स्लीपर क्लास की थी। एक एसी थ्री टायर और बाकी जनरल डब्बे थे। जिनमें यात्री ठंूस-ठूंस के भरे हुए थे। ट्रेन मेरठ स्टेशन पर कुछ ही देर रुकती है। हमने टीटीई को रिक्वेस्ट की। उसे विश्वास में लेकर एसी थ्री टियर में चढ़े।

आज तक नहीं देखा

बोगी में जैसे ही घुसे तो दुर्गंध का अहसास हुआ। पता चला दुर्गंध ट्वालेट से आ रही थी। इग्नोर करते आगे बढ़े। तभी सामने से घुसे आ रहे एक वेंडर पानी-पानी चिल्लाते घुसा। पानी और कोल्ड ड्रिंक लाते हमने उसके कार्टन बॉक्स पर नजर डाली। उसमें न तो बिस्लरी की बॉटल थी और न ही रेलवे द्वारा रजिस्टर्ड नीर की बॉटल। लोकल पानी विद लोकल रैपर के साथ बेधडक़ बेचा जा रहा था। दक्षिण भारत से 3459 किलोमीटर लंबी दूरी तय करने वाली इस ट्रेन के यात्रियों को लोकल पानी पिलाया जा रहा है, ये सोचकर गुस्सा आया। एसी बोगी में बाहरी बेचने वाले आसानी से आ जा रहे थे। इन्हें रोकनी की न तो अटेंडेंट में हिम्मत थी, न टीटीई में। अटेंडेंट से पूछा तो उसने बड़ी ही रुखाई से जवाब दिया कि ट्रेन में पैंटी नहीं है। ताज्जुब हुआ कि 48 घंटे लगातार देश के छोर से दूसरे छोर पर जा रही है उस ट्रेन में पैंट्रीकार नहीं है। खैर ट्रेन छुक-छुक कर बढऩे लगी।

कॉकरोच मिला

इस एसी बोगी में सफाई का कोई नामोनिशान नहीं था। कहीं चिप्स का रैपर था तो कहीं कागज के टुकड़े पड़े थे। पूछने पर पता चला कि जब से ट्रेन कोच्चिवेली से चली है तब से ट्रेन में कोई सफाई नहीं हुई। ट्रेन में बैठे एक यात्री ने कैमरा देखकर सफाई व्यवस्था को लेकर आवाज उठाई। कहा कि ट्रेन में सफाई व्यवस्था बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया है। किराया बढ़ाने के नाम पर देश सबसे आगे है, लेकिन सर्विस के नाम एकदम लूजर है। उसने इशारा करते एसी कोच में शान से सफर कर रहे कॉकरोच से हमारा परिचय कराया।

बदबूदार सुविधा

ट्रेन के इस कोच में बैठे तमाम यात्री मजबूरी में जिन चद्दर और कंबल को ओढऩे को मजबूर थे, उनमें से बदबू आ रही थी। एक यात्री से पूछा तो उसने कहा चादर तो अभी बदली हैं लेकिन इनमें बेतहाशा बदबू है और गंदी भी है। पास ही बैठे एक बताया कि आपको शायद पता नहीं है कि ये चादरें और कंबल कहां रखे हुए हैं। हमने कहा कि आपको तो ये सब एक गंदे से कवर में मिला होगा तो सज्जन अपने पीछे आने को कहा। कोच से बाहर आए और ट्वॉयलट के किनारे कुछ बैग्स को दिखाया तो हम दंग रह गए। चादरें और कंबल पॉलीबैग में बंधे हुए यूं ही पड़े थे। सज्जन ने कहा कि ट्वॉयलट के किनारे चादरें होंगी तो बदबू आएगी हीं। ट्वॉयलट के अंदर तो और भी बुरी हालत है। कोच के बाहर भी बेताहाशा गंदगी से वहां खड़ा होना दुश्वार हो रहा था।

हमारी आप बीती

मैं इंडिया पहली बार आई हूं। इस ट्रेन में सफर करने के बाद मुझे रियल इंडियन मेंटैलिटी के बारे में पता चला। सफाई तो मैंने इस ट्रेन में देखी ही नहीं। ट्रेन में सफाई होना बेहद जरूरी है। अगर 2300 रुपए का टिकट खरीदने के बाद भी अगर बेहतर बेसिक सर्विस भी न हो तो बड़ा ही खराब लगता है। ट्रेन काफी लंबी दूरी तय करती है लेकिन फूड की प्रॉब्लम है। लंबा सफर और ऐसी कोच होने के बाद भी ट्रेन में पैंट्री न होना काफी अखरता है। बाहर का कब तक और कैसे खाएंगे। इस ओर ध्यान देने की काफी जरूरी है।

- टैबी, फ्रॉम जर्मनी

मेरा ट्रेनों में काफी सफर होता रहता है। सभी ट्रेन का यही हाल है। सफाई से लेकर फूड की काफी प्रॉब्लम होती है। अब इस ट्रेन को देख लीजिए गोवा से यहां तक आने मैंने पांच रुपए से ज्यादा बाहर के खाने में खर्च कर दिए। सफाई तो आप देख ही रहे हैं। आने वाले रेल बजट में रेलवे मिनिस्टर को ध्यान देना चाहिए। अब तो मिनिस्टर भी कांग्रेस पार्टी है। किसी घटक दल का नहीं है। इस बार किराया बढ़ाने के बारे में न सोचकर सर्विस को किस तरह से बेहतर किया जाए इस पर बात होनी चाहिए।  

- पवन कुमार

एयरकंडीशन में सफर करने के बावजूद सर्विस न मिले तो टे्रनों में सफर करना बेकार है। स्लीपर की तो और भी हालत बेकार होगी। भाई साहब ये तो काफी लंबी दूरी की ट्रेन है। मेरठ ही संगम और नौचंदी भी चलती है। इस ट्रेन के मुकाबले में उनका सफर काफी छोटा है उनकी हालत और भी बुरी है। यूज की हुई चादरें दी जाती हैं। कॉकरोच यहां वहां घूम रहे हैं।

-  अरशद गौर

देश की ट्रेनों में पैंट्री एक बड़ी प्रॉब्लम बन गई हैं। मैं साउथ से ही आ रहा हूं। न तो सफाई की कोई ठीक से व्यवस्था और न खाने का कोई इंतजाम। गंदी चादरें और टॉवल। बाहर से लेकर आप कब तक खाना खाना खाएंगे। स्टेशन के प्लेटफॉर्म का खाना इतना हाइजेनिक होता नहीं है। बीमार होना तय है। इस ओर ध्यान देना बेहद जरूरी है। इस टे्रन में कम से कम दो एसी थ्री टायर कोच होने चाहिए थे। फस्र्ट एसी कोच जरूर होना चाहिए।

- सुबेदार आरआर राना

रेलवे से जुड़ी 10 बड़ी प्रॉब्लम

स्टेशन प्लेटफॉर्म से लेकर ट्रेनों सफर करने तक खासकर एसी और स्लीपर क्लास के यात्रियों को काफी प्रॉब्लम आती है। आइए बताते हैं।

1. सफाई - सफाई के मामले में मेरठ से चलने वाली ट्रेनों में अच्छी स्थिति नहीं है। एक्सप्रेस हो, सुपरफास्ट या पैसेंजर ट्रेनों में काफी गंदगी रहती है।

2. ट्वॉयलेट की बदबू - स्लीपर या एसी बोगी के यात्रियों को बदबू का सामना करना पड़ता है। करीब हर बोगी की समस्या है। ट्वॉयलेट की बदबू पूरे बोगी में फैलती है।

3. वेंडर्स की आवाज - रात हो या दिन का सफर। किसी भी स्टेशन पर वेंडर्स की आवाज यात्रियों की नींद में खलल पैदा करती हैं। यहां तक की एसी कोच भी अछूता नहीं है। वेंडर के घुस जाने से स्लीपर बोगी में तो और भी शोर होता है।

4. गंदे टॉवल और चादरें - घटिया सर्विस और इंतजाम का आलम ये हैं कि पब्लिक को एसी कोच में बदबूदार टॉवल और चादरें दी जाती हैं।

5. बद्तमीज स्टाफ - ट्रेन में किसी सर्विस के समय पर सर्विस पूरी न होने पर या फिर गंदे टॉवल और चादरों के बारे में बोलने पर ट्रेन अटेंडेंट का कई बार व्यवहार ठीक नहीं होता है।

6. चोरी - पब्लिक का सामान ट्रेनों में पूरी तरह से सेफ नहीं है। एसी कोच हो या स्लीपर यात्री के सामान चोरी रहते हैं।

7. बिना बात के झगड़े -  रात को जब लोग सो रहे होते हैं तो कुछ लोग मोबाइल पर बात कर नींद खराब करते रहते हैं। जिससे यात्रियों में झगड़े भी हो जाते हैं। इसे रोकने का कोई इंतजाम नहीं है।

8. इंक्वायरी काउंटर - स्टेशन के इस काउंटर से असंतुष्ट होकर ही लौटना पड़ता है। कर्मचारी या तो होता नहीं या यात्रियों से ठीक से बात नहीं करते।

9. एवीटीएम मशीन - स्टेशन पर इस मशीन का होना या न होना बराबर है। महीने में आधा से ज्यादा समय तक ये कोमा में ही रहती है। स्मार्ट कार्ड रखने वाले यात्री अपने को ठगा सा महसूस करते हैं।

10 बिना सूचना के - ट्रेन बीच में ही कहीं खड़ी हो जाए तो इसकी प्रॉपर कोई सूचना यात्री को नहीं मिलती। ट्रेन क्यों खड़ी। सिग्नल नहीं है या कोई और बात है इसकी जानकारी देने की कोई व्यवस्था नहीं है।

बिना पैंट्री कार के चलने वाली ट्रेन

मेरठ से जाने वाली प्रमुख ट्रेनों की बात करें तो नौचंदी और संगम दोनों ही ओवर नाइट ट्रेनें हैं। संगम करीब शाम को सात बजे चलती है तो नौचंदी रात करीब आठ बजे। दोनों ही ट्रेने अगले दिन दोपहर तक इलाहाबाद पहुंचती है। 12-13 घंटे के सफर की ये दोनों ही ट्रेनें अलग-अलग रूट से 700-800 किलोमीटर तक का सफर तय करती हैं। इसके बावजूद इन दोनों ही ट्रेनों में पैंट्री कर सुविधा नहीं है। पब्लिक को बाहर प्लेटफॉर्म से खरीदकर अनहाइजेनिक खाना खाने को मजबूर होना पड़ता है। यहां तक की मेरठ स्टेशन पर आने वाली दूरस्थ ट्रेनों तक में पैंट्री की सुविधा नहीं है।

काफी समय से मांग

मेरठ से जाने वाली और यहां से गुजरने वाली ट्रेनों में एक दो टे्रन को छोड़ दिया जाए तो किसी भी ट्रेन में पैंट्री की सुविधा नहीं है। खासकर संगम और नौचंदी एक्सप्रेस में काफी सालों से पैंटी कोच रखने मांग हो रही है। लेकिन किसी भी बजट में इस ओर ध्यान नहीं दिया है। पब्लिक को प्लेटफॉर्म पर अनहाइजेनिक खाना खाने को मजबूर होना पड़ता है। साथ ही वेंडर को मनमाने रुपए भी देने पड़ते हैं।

इस बार आस

मेरठ को इस बार आस है कि इन दोनों टे्रनों में सर्विस सुधरेगी और सर्विस बढ़ाई भी जाएगी। इसका रीजन ये भी है दोनों ही ट्रेनों के रूटों से दो हजार से अधिक यात्री सफर करते हैं।

'ओवर नाइट ट्रेनों जो 8 से 9 घंटे का सफर तय करती है। उनमें अधिकतर लोग खाना खाकर आते हैं। इसलिए उनमें इतनी जरुरत पैंट्री की नहीं होती है। हां, कोच्चिवली-देहरादून एक्सप्रेस जैसी लंबी दूरी की ट्रेनों के लिए पैंट्री काफी जरूरी है। ट्रेनों में साफ-सफाई न होना और चादरें गंदी मिलना काफी गंभीर विषय है। इसके बारे मैं कई बार संबंधित कमेटी मांग भी कर चुका हूं। इस बार भी इस मुद्दे को उठाऊंगा.'

- राजेंद्र अग्रवाल, सांसद

ताक पर स्टेशन की सुरक्षा व्यवस्था

देश में आतंकी घटना होने के बाद और केंद्रीय जांच एजेंसियों ने आने वाले समय में आतंकवादी घटना और होने के संकेत देने के बावजूद सिटी स्टेशन की सुरक्षा व्यवस्था ताक पर रखी हुई है। किसी भी पैसेंजर की जांच नहीं हो रही है। न तो पैसेंजर की तलाशी ली जा रही और न ही उनके सामान की। आसानी से कोई भी संदिग्ध आतंकी घटना का सामान ला और ले जा सकता है। यहां तक कि स्टेशन के एंट्री और एग्जिट से इलेंट्रनिक विंडो भी हटा लिए हैं।