रांची (ब्यूरो)। सदर हॉस्पिटल में सुविधा बढ़ाने के कई सपने दिखाए गए, लेकिन हॉस्पिटल में कितनी सुविधाएं बढ़ी हंै, यह वहां इलाज के लिए आने वाले मरीज ही बता सकते हैं। हॉस्पिटल में बिजली कटौती को देखते हुए यहां सोलर पैनल लगाने का निर्णय लिया गया था। तीन साल पहले सदर हॉस्पिटल में सोलर पैनल लगाया भी गया, लेकिन इसका इस्तेमाल आज तक नहीं हो सका है। बीते तीन सालों से सोलर पैनल बेकार पड़े हैैं। इस कारण हॉस्पिटल में 24 घंटे पावर सप्लाई का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। हॉस्पिटल में आज भी बिजली कटौती होती है। लेकिन, प्रबंधन के पास विकल्प होते हुए वह इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहा। वैसे तो सदर हॉस्पिटल को आधुनिक और सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल का दर्ज प्राप्त है। लेकिन यहां सुविधाओं को घोर अभाव हैै। हर तरफ फैली बदइंतजामी सदर हॉस्पिटल की छवि बिगाड़ रही है।

4.70 करोड़ की लागत से लगे थे 300 पैनल

सदर हॉस्पिटल में क्लीन एनर्जी मिशन के तहत 4.70 करोड़ की लागत से 300 से अधिक सोलर पैनल लगाए गए थे। हॉस्पिटल की छत पर 180 केवीए की कैपिसिटी वाला रूफ टॉप सोलर प्लांट लगाया गया था। लेकिन इसका इस्तेमाल काफी कम हो पाया है। बीते कई महीनों से सभी पैनल बेकार पड़े हैं। न तो इसे ठीक कराया जा रहा है और न ही इसे उपयोग में लाया जा रहा है। इस वजह से हॉस्पिटल पर बिजली मद में खर्च का अतिरिक्त भार बढ़ता ही जा रहा हैै। सोलर पैनल के उचित तरीके से इस्तेमाल होने पर न सिर्फ बिजली कटौती के वक्त पावर सप्लाई होता रहता, बल्कि बिजली के कम इस्तेमाल पर हॉस्पिटल के बिजली मद में होने वाले खर्च भी कम हो सकते थे। इसके अलावा मरीजों को निर्बाध बिजली भी आपूर्ति हो सकती थी। लेकिन अधिकारियों की इच्छा शक्ति में कमी के कारण हॉस्पिटल में भर्ती मरीज को इसकी परेशानी झेलनी पड़ रही है।

हर महीने पांच लाख का बिजली बिल

सदर हॉस्पिटल में हर महीने लाखों रुपए का बिजली बिल आता है। कभी चार तो कभी पांच लाख बिजली का बिल सदर हॉस्पिटल का रहता है। गर्मी के मौसम में बिजली का बिल बढ़ जाता है। इन्हीं खर्चे को बचाने के लिए सोलर प्लांट लगा था। लेकिन दुर्भाग्य कि बात है कि इस प्लांट का सही इस्तेमाल भी हॉस्पिटल प्रबंधन नहीं कर पा रहा है। हॉस्पिटल के कर्मचारियों की मानें तो बिजली बिल के अलावा हर महीने एक से डेढ़ लाख रुपए का डीजल लग जाता है। बिजली नहीं होने पर जेनरेटर चलता है जो बगैर डीजल के चल नहीं सकता। हॉस्पिटल में 500 हॉर्सपावर का एक जेनसेट लगा है। जिसमें हर महीने करीब 1200 से 1600 लीटर डीजल की खपत होती है। किसी भी हॉस्पिटल में इमरजेंसी, ऑपरेशन और टेस्ट आदि को देखते हुए बिना ब्रेक हुए पॉवर सप्लाई की जरूरत होती है। लेकिन सुपरस्पेशियलिटी सदर हॉस्पिटल में सब भगवान भरोसे चल रहा है।

हो सकता है 18 लाख वाट बिजली प्रोडक्शन

सदर हॉस्पिटल में 180 केवीए का सोलर प्लांट लगा हुआ है। इससे करीब 18 लाख वाट बिजली प्रोडक्शन हो सकता है। इससे बिजली में होने वाला भारी भरकम खर्चे को भी रोका जा सकता है। इसी खर्चे को हॉस्पिटल की दूसरी जरूरतें या अन्य सुविधाओं को बढ़ाने में लगाया जा सकता है। हॉस्पिटल में सोलर प्लांट केंद्र और राज्य दोनों सरकार के सहयोग से लगा था। इसलिए स्टेट और सेंट्रल दोनो गवर्नमेंट की इसकी देखरेख की जिम्मेवारी बढ़ जाती है। न तो सरकार इस ओर ध्यान दे रही है और नहीं हॉस्पिटल के अधिकारी या स्वास्थ्य विभाग इसे लेकर जागरूक नजर आ रहा है।

पिछली बार भरा था 1.20 करोड़ बिल

सदर हॉस्पिटल अभी पूरी तरह से चालू नहीं हो पाया है। अभी 250 बेड ही मरीजों के लिए चालू है। इसके अलावा कुछ मशीनें भी ऑपरेशनल हो गई हैं। इसके लिए पिछली बार मार्च 2021 में हॉस्पिटल प्रबंधन ने 1.20 करोड़ रुपए का बिजली बिल जमा किया था। सोलर पैनल को चालू कर हॉस्पिटल प्रबंधन हर महीने लगभग लाखों रुपये बिजली बिल की बचत कर सकता है।