राजनेताओं और अफ़सरों की जुबान में झोला ब्रिगेड कहे जाने वाले एनजीओ सर्कल यानी स्वयंसेवी संस्थाओं में लोग अरविंद केजरीवाल को बरसों से जानते थे.


उनकी पहचान कभी अरुणा राय के जूनियर साथी के रूप में, तो कभी कुछ अलग पहचान बनाने में जुटे आरटीआई कार्यकर्ता और कभी मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित स्वयंसेवी के रूप में होती रही है.लेकिन भारत के घर-घर में केजरीवाल की तस्वीर पहुंची टीवी स्क्रीन के प्राइम टाइम और अखबारों के पहले पन्ने पर चढ़ कर वर्ष 2011 में.केजरीवाल हमेशा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ने वाले अन्ना हज़ारे की बगल में बैठे दिखते, उनके कान में फुसफुसाते, उनके वाक्यों को सँभालते, और बात बिगड़ती देख उन्हें पत्रकारों के बीच में से उठाकर ले जाते दिखे.अक्सर आधी बांह वाली कमीज़ पहनने वाले केजरीवाल दो साल पहले कहीं से लीडर नहीं लगते थे, लेकिन आज वो ऐसे खांटी नेता हैं जिसने सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी, दोनों की सत्ता की डगर को मुश्किल बना दिया.


भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के जो नेता उनको नेता नहीं मान रहे थे, वो आज आप से सीखने की बात कर रहे हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि वो आप से सीख लेंगे.वहीं बीजेपी को भी मानना पड़ा कि उनकी जीत चौंकानेवाली थी.तीसरा विकल्प

इससे पहले केजरीवाल ने विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के मामलों में मुहिम चलाई.केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के इन मामलों को तब उठाया जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार पर एक के बाद एक घोटालों का आरोप लग रहे थे. हालांकि उनके आलोचक कहते हैं कि वो सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे हथकंडे अपना रहे हैं.लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि अरविंद केजरीवाल ने चुप्पी की एक संस्कृति को तोड़ा है. जो उनके मन में था, उसे वो ज़ुबान पर लाए हैं.अरविंद केजरीवाल ये कहते हुए साल भर पहले राजनीति के मैदान में कूदे कि - “देश को बेचा जा रहा है और सभी पार्टियां इसके लिए दोषी हैं. हमें ये सिस्टम साफ़ करना होगा.”पूर्व नौकरशाह अरविंद केजरीवाल को सामाजिक कार्य और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए मुहिम चलाने के लिए 2006 में रामन मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया.वर्ष 2010 में उन्होंने भ्रष्टाचार के विरोध में 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' की स्थापना की, जिसका मकसद सरकार पर भ्रष्टाचार विरोधी कड़े कानून बनाने के लिए दबाव डालना था.लेकिन 45 वर्षीय केजरीवाल सुर्खियों में तब आए जब उन्होंने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाई.

आईआईटी से इंजीनियरिंग की
राजनीति के मैदान में आने के बाद केजरीवाल जनता को सत्ता के हस्तांतरण, भ्रष्चार से लड़ने, महंगाई को काबू करने और किसानों को उनकी उपज का उचित दाम दिलवाने की बात कर रहे हैं.अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा था, “आज से आम लोग राजनीति में दाखिल हो रहे हैं, भ्रष्ट नेताओं, अपने दिन गिनना शुरू कर दो.”अरविंद केजरीवाल राजनीति के पहले दौर में तो सफल हो गए हैं अब उनपर जिम्मेदारी और साथ ही बोझ होगा जनता को किए गए वादे को पूरा करने का. अगर वो सफल हो जाते हैं तो कहा जाएगा कि वाकई एक आम आदमी भी ठान ले तो राजनीतिक में बदलाव ला सकता है.और अगर उनके हाथ नाकामी लगती है, तो इसे उसी गणतांत्रिक प्रक्रिया का एक अंग माना जाएगा जहां लोकतंत्र चुनाव के साथ शुरू होता है और उनमें जीत दर्ज करने के बाद समाप्त हो जाता है.

Posted By: Subhesh Sharma