amit.jaiswal@inext.co.inPATNA: बिहार में बढ़ रहे आर्थिक अपराध के मामलों को रोक पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे स्टेट की इकॉनोमिक ऑफेंस यूनिट आर्थिक अपराध शाखा का निहत्था होना. दिन-प्रतिदिन इस यूनिट में पुलिस अधिकारियों और पदाधिकारियों की कमी आती जा रही है. किसी पुराने केस की न तो प्राïॅपर जांच हो रही है और न ही उसमें चार्जशीट दाखिल किए जा रहे हैं. नतीजतन पेंडिंग केसों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. हालत ऐसी हो गई है कि नए केस पर भी काम नहीं हो पा रहा है. ये एक कड़वी सच्चाई है जिससे बिहार की नीतीश गवर्नमेंट और पुलिस महकमा भी अच्छे से वाकिफ होगी. अब सवाल यह उठ रहा है कि धीरे-धीरे निहत्थी होती जा रही इकोनॉमिक ऑफेंस यूनिट बिहार के अंदर बढ़ते आर्थिक अपराध के मामलों पर कैसे रोक लगाएगी?

 

 

डीआईजी की कुर्सी है खाली

बिहार की इकोनॉमिक ऑफेंस यूनिट में डीआईजी की कुर्सी खाली है। वो भी लंबे समय से। फिलहाल यूनिट में आईजी जेएस गंगवार के नीचे सीधे एसपी हैं। डीआईजी का प्रभार फिलहाल आईजी के पास ही है। स्वतंत्र रूप से डीआईजी के नहीं होने का असर यूनिट के अधिकारियों के साथ ही केसों पर भी पड़ रहा है. 

 

एक एसपी के हवाले पूरी जिम्मेवारी

नीतीश कुमार की गवर्नमेंट ने नवंबर 2011 में इकोनोमिक ऑफेंस यूनिट का गठन किया था। उस दौरान एसपी के तीन पोस्ट बनाए गए थे। एक दौर था जब यूनिट में तीन एसपी काम कर रहे थे। उस दौरान आर्थिक अपराध के कई मामले सामने आए। उन मामलों में तेजी से कार्रवाई भी हुई। आरोपियों की संपत्ति को जŽत भी किया गया। लेकिन अब यूनिट के पास सिर्फ एक एसपी शंकर झा ही बचे हैं। दो एसपी की कुर्सी बीते कई महीनों से खाली है।

 

डीएसपी की संख्या है जीरो

शुरुआती दिनों में यूनिट के साथ एक-दो नहीं, बल्कि पूरे एक दर्जन यानी की 12 डीएसपी काम कर रहे थे। धीरे-धीरे इनकी संख्या में भी कमी आती गई। ताजा हालात ये है कि बिहार की इकोनॉमिक ऑफेंस यूनिट के पास एक भी डीएसपी नहीं है। इनकी संख्या जीरो हो चुकी है। जिसका नतीजा है कि पेंडिंग केसों का निपटारा थम सा गया है। अधिकांश केसों का सुपरविजन रूका हुआ है।

 

इंस्पेक्टर कम, कांस्टेबल ज्यादा

दूसरी तरफ, यूनिट में इंस्पेक्टर की संख्या आधे से भी कम हो गई है। शुरुआती दौर में यूनिट के पास 51 पुलिस इंस्पेक्टर हुआ करते थे। वर्तमान में सिर्फ 24 पुलिस इंस्पेक्टर ही बचे हैं। इंस्पेक्टर की कमी का व्यापक असर यूनिट के काम-काज पर पड़ा है। यूनिट की ओर से हाल के दिनों में न तो कोई नए रेड हुए और न ही पुराने मामलों में तेजी से कार्रवाई हुई है। यूनिट के पास सबसे अधिक संख्या में कुछ बचे हैं तो वो हैं कांस्टेबल। इनके पास जरूरत से ज्यादा कांस्टेबल हैं।

 

150 से अधिक हैं केस पेंडिंग 

एक डीआईजी, दो एसपी, 12 डीएसपी और 27 इंस्पेक्टर की कमी ने यूनिट की कमर ही तोड़ डाली है। वर्तमान में पेंडिंग केसों की संख्या 150 से भी अधिक है। ऐसे कई केस हैं जिसमें केस डायरी भी अधूरी है। टाइम पर चार्जशीट दाखिल नहीं किया गया। टाइम पर प्रॉपर कार्रवाई नहीं होने से आरोपियों की संपत्तियों को भी जŽत नहीं किया जा सका है।

 

पदाधिकारियों की कमी का असर पड़ा है। पेंडिंग केसों की संख्या काफी बढ़ गई है। नया कुछ भी नहीं हो पा रहा है।

-जेएस गंगवार, आईजी, इकोनॉमिक ऑफेंस यूनिट

Posted By: Inextlive