मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती है बड़ी संख्या में उच्च गुणवत्ता वाले रोज़गार का निर्माण. भारत को अगले दस साल तक हर महीने क़रीब 10 लाख नई नौकरियाँ तैयार करनी होंगी.


दुनिया के किसी और देश के सामने रोज़गार पैदा करने की समस्या इतनी बड़ी नहीं है. इसके लिए सीधे तौर पर भारत की बड़ी आबादी जिम्मेदार है.भारत नौजवानों का देश है और अगले कई दशकों तक देश की औसत आयु तीस साल से कम रहने वाली है.इसलिए देश में कामगार तबका जनसंख्या की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है. लेकिन नौकरी और रोज़गार के मौक़े उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ रहे.पढ़ें, लेख विस्तार सेसंभव है कि रोज़गार की तलाश की दौड़ में शामिल होने वाले एक चौथाई नवयुवक स्वयं का कामकाज़ शुरू कर दें और उद्यमी बन जाएं. यानी रोज़गार निर्माण का सीधा संबंध नए कारोबार शुरू करने से है. और नए कारोबार का संबंध कारोबार करने से जुड़ी सुविधाओं से हैं.


अगर किसी छोटे कारोबार को शुरू करने के लिए सैकड़ों जगहों से अनुमति और स्वीकृति लेनी होगी, साथ ही अफ़सरशाही से जूझना होगा तो बड़े स्तर पर नए कारोबार शुरू करना संभव नहीं होगा.नया कारोबार शुरू करने को आसान बनाने के अलावा रोज़गार तैयार करने की दिशा में तीन अन्य महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं.

पहली चुनौती है, शिक्षा और कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट). इनके बिना नए रोज़गार निम्न गुणवत्ता के होंगे और उनसे होने वाली आय भी कम होगी. भारत में अकुशल श्रमिकों को इतनी भी मज़दूरी नहीं मिलती कि वो ग़रीबी रेखा से ऊपर उठ सकें.भारत में एक विचित्र समस्या है रोज़गार में कमी के साथ-साथ कुशल श्रमिकों की कमी. भारत में जिस स्तर पर आधारभूत ढांचा तैयार करने की योजना बनाई जा रही है उसे देखते हुए भारत में ज़रूरत से 80 फ़ीसदी कम सिविल इंजीनियर और आर्किटेक्ट होंगे.यहाँ तक कि वेल्डर और इलेक्ट्रिशियन जैसे अर्ध-कुशल पेशेवरों की भी कमी रहेगी.शहरीकरण संबंधी निवेशपिछले तीन दशकों में चीन एक मात्र ऐसा देश है जो इतने बड़े पैमाने पर औद्योगिक रोज़गार निर्माण कर सका है. निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के सहारे चीन ने बहुत तेज़ी से रोज़गार तैयार किए.भारत के पास चीन जैसी सहूलियत या राजनीतिक व्यवस्था नहीं है जिससे वो भी ऐसा कर सके.दुनिया भी एक और निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था को सहयोग देने के लिए तैयार नहीं है. इसलिए भारत में रोज़गार निर्माण मुख्य तौर पर घरेलू कारकों पर निर्भर होगा.

इसके अलावा चीन की श्रम आपूर्ति में आई स्थिरता का लाभ भी भारत उठा सकता है. बढ़ती मज़दूरी और मज़दूरों की कमी के कारण बहुत से कम लागत वाले निर्माण कार्य चीन से बाहर जा रहे हैं. भारत चाहे तो इस मौक़े का लाभ उठा सकता है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh