मोदी सरकार ने भारत की सुरक्षा के लिए अब कमर कस ली है. उनका सुरक्षा के प्रति इस तरह का विजन सभी दुश्‍मनों को चारो खाने चित कर देगा. जी हां एनडीए सरकार चीन की सीमा से सटे गांव के लोगों को मिलिट्री ट्रेनिंग देने की योजना बना रही है ताकि वे अर्धसैनिकों बलों की तरह काम कर सकें.


घुसपैठियों को मिलेगा माकूल जवाब शीर्ष अधिकारियों के मुताबिक,'सीमा से सटे लोगों को सैन्य ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे जरूरत के वक्त अर्धसैनिक बलों की तरह कार्रवाई कर सकें. सीमा के एक किमी दायरे में रहने वाले लोग इसके लिए सबसे मुफीद विकल्प हैं. ये लोग किसी किस्म की घुसपैठ पर नजर रख सकेंगे. खासतौर पर वहां जहां सीमा का स्पष्ट विभाजन नहीं है. गृह मंत्रालय अरूणाचल प्रदेश में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस की मौजूदगी को बढ़ाकर दोगुना करने पर भी विचार कर रही है. वहीं भारतीय सेना के प्रमुख जनरल विक्रम सिंह आज बीजिंग के लिए रवाना होंगे. वह बीते एक दशक में चीन जाने वाले पहले भारतीय सेना प्रमुख होंगे. 5500 करोड़ रुपये की योजना


एनडीए सरकार ने सीमावर्ती इलाकों को लेकर जो नीति बनाई है. उसके अंतर्गत इन इलाकों में आम नागरिकों की आसान पहुंच सुनिश्चित करना और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना भी है. गृह मंत्रालय की ओर से पहले ही 5500 करोड़ रुपये की योजना का प्रस्ताव पेश किया गया है. इसके तहत अरूणाचल प्रदेश में चीन से सटी सीमा पर गांववालों को बसने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. अधिकारियों का कहना है कि अगर सीमावर्ती इलाकों के लोगों को सुविधांए और हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाए तो घुसपैठ के मामलों में कमी आएगी.

पहले भी दी गई ट्रेनिंग 1962 में भारत और चीन के बीच हंई जंग के बाद से सीमा के इलाकों में सैन्य प्रशिक्षण देने की परंपरा शुरू हुई. स्पेशल सर्विस ब्यूरो(अब सशस्त्र सीमा बल) का मकसद लोगों को प्रोत्साहन और ट्रेनिंग देकर उनकी क्षमताओं का विकास करना था. हालांकि सशस्त्र ट्रेनिंग की प्रक्रिया 2001 में खत्म कर दी गई. इससे मिलती जुलती परंपरा ग्रामीण सुरक्षा कमेटी के तौर पर जम्मू-कश्मीर में आज भी है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh