एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिंता जाहिर की है.


विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनिया के तीन-चौथाई देशों के पास सूक्ष्मजीवीरोधी यानी एंटीबायोटिक दवाओं को संरक्षित रखने की कोई योजना नहीं है.संस्था ने कई बार चेतावनी दी है कि विश्व ऐसे दौर में प्रवेश करने जा रहा है जहां एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो जाएंगी.चिंता की बात यह है कि अगर ऐसा हुआ तो आधुनिक चिकित्सा लगभग असंभव हो जाएगी.एक रिपोर्ट के मुताबिक कई संक्रमणों के मामले में दवाओं के ख़िलाफ़ बढ़ रही प्रतिरोधक क्षमता रोकने की ज़रूरत है.विशेषज्ञों का मानना है कि हालात भयावह हो गए हैं और दुनिया के ज़्यादातर देश इसके लिए तैयार नहीं है.क्यों है स्थिति डरावनी?दरअसल, सूक्ष्मजीवी यानी जीवाणु दवाओं के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर लेते हैं.ऐसी स्थिति में टीबी जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज असंभव हो जाएगा.
कई तरह की सर्जरी और कैंसर का इलाज भी एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भर है.इसके अलावा एचआईवी की एंटीवायरल दवाओं और मलेरिया की दवाओं के कमज़ोर होने की चिंता जताई जा रही है.वेलकम ट्रस्ट मेडिकल चैरिटी के डॉक्टर माइक टर्नर कहते हैं, "दुनिया के ज़्यादातर इलाकों में लोगों को पता ही नहीं है कि कौन सी दवा क्यों जी दा रही है.यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है."

Posted By: Satyendra Kumar Singh