राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए की विशेष अदालत ने अपने क़िस्म के पहले मामले में भारतीय बाज़ार में फ़र्ज़ी मुद्रा फैलाने के आरोप में छह लोगों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है.


इन अभियुक्तों को वर्ष 2009 में महारष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने मुंबई में गिरफ़्तार किया था.इस मामले में मुंबई पुलिस ने रवि धिरेन घोष उर्फ जाधव उर्फ रुबी, नुरुद्दीन इस्लाम, मोहम्मद समद, मोहम्मद ऐजुल शेख़, मोहम्मद अस्रुद्दीन शेख़ तथा अज़रुल तमेज़ शेख़ नामक अभियुक्तों के ख़िलाफ़ अभियोगपत्र भी दाख़िल किया था.लेकिन बाद में इस मामले को देश के अलग-अलग शहरों में दर्ज ऐसे अन्य मामलों के साथ जोडकर एनआईए ने इसकी पड़ताल शुरु की.देश के अलग-अलग हिस्सों से बरामद फ़र्ज़ी मुद्रा की जांच बेंगलूर स्थित विशेषज्ञों से करवाई गई थी. जांचकर्ताओं ने इस मुद्रा की पड़ोसी मुल्क की मुद्रा से समानता साबित की.इस जांच में विशेषज्ञों ने यह साबित किया कि ये फ़र्ज़ी नोट, उसके लिये इस्तेमाल किया गया कागज़, उसका दर्जा, रासायनिक विशेषताएं, वज़न और छपाई पड़ोसी मुल्क के नोटों से मिलती- जुलती है.'आतंकी कृत्य'
"जांच एजेंसी ने सारे तथ्य अदालत के सामने रखे जिसके बाद अदालत ने माना कि फ़र्ज़ी मुद्रा भारत में वितरित करना आतंकी कृत्य है जिसका उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाना है. सारे अभियुक्तों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई."-रोहिणी सॅलियन, विशेष सरकारी वकील


विशेष सरकारी वकील रोहिणी सॅलियन ने कहा, ''जांच एजेंसी ने सारे तथ्य अदालत के सामने रखे जिसके बाद अदालत ने माना कि फ़र्ज़ी मुद्रा भारत में वितरित करना आतंकी कृत्य है जिसका उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाना है. सारे अभियुक्तों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई.''यह भारत का पहला ऐसा मामला है जिसमें बाज़ार में फ़र्ज़ी मुद्रा वितरित करने के जुर्म में किसी को अदालत में दोषी क़रार दिया गया हो और सज़ा सुनाई गई हो.एनआईए द्वारा जांच किया जाने वाला भी यह देश का पहला मामला है.'सूत्रधार पाकिस्तानी नागरिक'महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने इन अभियुक्तों को 14 मई 2009 को मुंबई के मझगांव इलाके में स्टार सिनेमा के पास फ़र्ज़ी मुद्रा के साथ गिरफ्तार किया था और उनके पास से 1000 रुपये के 75 फ़र्ज़ी नोट बरामद किए थे.महाराष्ट्र एटीएस द्वारा शुरुआती जांच के बाद 19 जून 2009 को एनआईए ने मामला अपने हाथों में लेकर जांच शुरू की और 6 नवंबर 2009 को अभियुक्तों के ख़िलाफ़ 1000 पन्नों का अभियोग-पत्र विशेष एनआईए अदालत में दायर किया था.दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश पृथ्वीराज चव्हाण ने सभी अभियुक्तों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई.

विशेष सरकारी वकील रोहिणी सॅलियन ने कहा, ''अभियोग-पत्र में यह आरोप लगाया गया था कि इस तस्करी का सूत्रधार शौक़त नाम का पाकिस्तानी नागरिक है और यह तस्करी भारत की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से की गई थी. एनआईए द्वारा पेश किए गए सबूतों के आधार पर यह फ़ैसला सुनाया गया.''

Posted By: Subhesh Sharma