भारत में काले धन के मुद्दे पर होने वाली सारी बहस निवेश के आसपास घूमती नज़र आती है. लेकिन इसमें आय के प्रवाह को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है.


सबसे पहली बात आय और उसके प्रवाह को संपत्ति (या स्टॉक) से अलग करके देखने की ज़रूरत है.आय का प्रवाह हर हफ़्ते, हर महीने और साल चलता रहता है. लेकिन आय में से बचत होने के बाद ही संपत्ति का निर्माण होता है.लोगों की जो बचत होगी वह किसी बैंक खाते में जमा होगी या किसी संपत्ति में उसका निवेश किया जाएगा. काले धन के बारे में जो अनुमान लगाया जाता है, उसमें दोनों चीज़ें शामिल होती हैं.काले धन पर होने वाली बहस कैसे निवेश के ऊपर अटकी हुई है और काला धन देश से बाहर कैसे जाता है?पढ़िए अरविंद विरमानी का विश्लेषणपारंपरिक तौर पर लोग सोचते हैं कि उच्च आय वर्ग के लोग कर देने और उसकी जानकारी सार्वजनिक करने से बचते हैं.
अभी काले धन के नाम पर जो बहस हो रही है उसमें निवेश किए गए धन की बात हो रही है. लेकिन पूरी अर्थव्यवस्था में आय का जो प्रवाह चल रहा है, उस मसले पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.भारत में लोगों का बैंक खाता है और अगर उन्होंने विदेश में बैंक खाता खोला है तो हवाला मार्केट के माध्यम से पैसे विदेश चले जाते हैं.


हमारे देश के बहुत सारे लोग बाहर रहते हैं, हवाला का कारोबार करने वाले उनका इस्तेमाल करते हैं.यह एक तरह की ब्लैक मार्केट है, जिसके माध्यम से पैसा मंगाया और भेजा जाता है. इस तरह से पैसा भेजना आसान है.काले धन पर 'कड़ाई'पारंपरिक तौर पर तो बाहर के देशों को विकासशील देशों से आने वाले पैसे को जमा करने में परेशानी नहीं थी. लेकिन अब विदेशी बैंकों में पैसा रखना कठिन है.पिछले पाँच सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काले धन को उजागर करने और अपने देश में वापस लाने में लोगों की रुचि बढ़ी है.जैसे पहले अमरीका में रहने वाले भारतीय अमरीकी दो खाते रखते थे.लेकिन अगर अमरीका में इसकी जाँच होती है तो उनके खातों की सारी जानकारी हो जाती है.काले धन के ख़िलाफ़ बने माहौल की एक वजह चरमपंथ और इसको मिलने वाली वित्तीय मदद को रोकने भी है. इसके कारण अब विदेशों में भी सवाल पूछा जा रहा है कि पैसा कहां से आया है?(अरविंद विरमानी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं. उनसे बात की बीबीसी संवाददाता ज़ुबैर अहमद ने)

Posted By: Satyendra Kumar Singh