नोएडा से सैकड़ों किलोमीटर करीब 422 किमी दूर पश्चिम नेपाल के छोटे से गांव धारापानी में आरुषि-हेमराज हत्याकांड फ़ैसले से हलचल है.


भारतीय मीडिया में सामान्यतः आरुषि हत्याकांड कहकर संबोधित किए जा रहे इस मामले के दूसरे पीड़ित हेमराज को अमूमन उपेक्षित ही रखा गया है.घटना के बाद 14 साल की आरुषि, अब उसकी हत्या के दोषी उसके मां-बाप की तकलीफ़ों-भावनाओं को लेकर तो बहुत कुछ कहा गया लेकिन एक गरीब नौकर, जो अपना परिवार पालने के लिए एक गरीब देश से आए थे, के बारे में कुछ कहने, सोचने की ज़हमत किसी ने नहीं उठाई.वहीं हेमराज की हत्या के बाद उनकी पत्नी ख़ुमकला अपने इकलौते बेटे को नौकरी के लिए भारत नहीं भेजना चाहतीं. वह कहती हैं, "इंडिया भेजने को मेरा मन नहीं करता, भगवान करे मेरे बच्चे को कुछ भी मिले यहीं नेपाल में मिल जाए. इंडिया भेजना नहीं पड़े."


नेपाल के अर्घाखांची धारापानी में हेमराज का घर किसी भारतीय पहाड़ी घर से अलग नहीं है. परिवार के पास थोड़ी सी ज़मीन है लेकिन उससे गुज़ारा नहीं चलता. इसीलिए हेमराज भारत, मलेशिया और फिर भारत गए ताकि नौकरी कर परिवार का पेट भर सकें, बच्चों को शिक्षा दिलवा सकें.

हेमराज की पत्नी बताती हैं कि तलवार दंपत्ती के घर नौकरी करते हुए हेमराज हर महीने करीब पांच हज़ार रुपये अपने घर भेजते थे. यह राशि बहुत बड़ी तो नहीं थी लेकिन इससे परिवार का गुज़ारा चल जाता था.

रिश्तेदारों की मेहरबानीहेमराज की 78 वर्षीय मां कृष्णकला बंजाड़े, 46 वर्षीय बीवी ख़ुमकला बंजाड़े और 17 वर्षीय बेटा प्रजोन बंजाड़े तीनों बीमार हैं और ख़ामोशी से जीवन के इस खेल को स्वीकार कर चुके हैं.लेकिन ख़ुमराज जानती हैं कि अभी संघर्ष बहुत लंबा है. वह कहती हैं कि हमारा तो कुछ नहीं लेकिन बेटे की ज़िंदगी बहुत लंबी है.उनके पड़ोसी मित्र बहादुर खत्री कहते हैं, "फ़ैसला तो किया है लेकिन फ़ैसला करने से नहीं होगा. मतलब कम से कम जायज़ मांग इन लोगों का पूरा होना चाहिए. हम यह चाहते हैं कि क्षतिपूर्ति, आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए."सागर भी कहते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब है, " उसके घर में आर्थिक व्यवस्था कमज़ोर थी, अब भी कमज़ोर है. उसके बच्चे का इलाज कराने के लिए, उसका खर्चा चलाने के लिए उसके नाते-रिश्तेदार खर्च कर रहे हैं."ख़ुमकला तलवार दंपत्ति को सज़ा दिलाने के लिए भारत सरकार का धन्यवाद करती हैं लेकिन कहती हैं कि तलवार दंपति को फ़ांसी होनी चाहिए थी.
वह कहती हैं, "जो ग़लत काम करता है उसको सजा होनी चाहिए, उसको पीटना चाहिए था लेकिन उन्हें मारना नहीं चाहिए था. उनको घर से निकाल देते. एक ग़रीब आदमी नेपाल से काम करने के लिए, दो रोटी खाने के लिए इंडिया में गए, उसे वहीं मार के ख़त्म नहीं कर देना चाहिए."अपने बेटे को भारत नहीं भेजने की उनकी इस इच्छा या फ़रियाद को समझना शायद कोई बहुत मुश्किल काम भी नहीं.

Posted By: Subhesh Sharma