विधानसभा चुनाव: कितने विश्वसनीय हैं चुनावी सर्वे
इन क़यासों को हवा दे रहे हैं चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण जिनपर भले ही यक़ीन कम लोगों को हो पर वे चर्चा के विषय बनते हैं.हालांकि चुनाव तो पांच राज्यों में होने हैं लेकिन सर्वेक्षण करने वालों ने सारा ध्यान चार राज्यों पर केंद्रित कर रखा है.हाल में जो सर्वेक्षण सामने आए हैं वे क्लिक करें कांग्रेस के ह्रास और भारतीय जनता पार्टी के उदय की एक धुंधली सी तस्वीर पेश कर रहे हैं.सर्वेक्षणों ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ के बारे में कमोबेश साफ़ लेकिन दिल्ली के बारे में भ्रामक तस्वीर बनाई है.इसकी एक वजह आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ की उपस्थिति है जो एक राजनीतिक समूह है. उसकी ताक़त और चुनाव को प्रभावित करने के सामर्थ्य के बारे में क़यास इस भ्रम को और भी बढ़ा रहे हैं.
तीन सर्वेक्षण तीन तरह के नतीजे दे रहे हैं जिनसे इनकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह पैदा होते हैं. सर्वेक्षणों के बुनियादी अनुमानों में इतना भारी अंतर है कि संदेह के कारण बढ़ जाते हैं.दिल्ली का महत्व
दिल्ली भारत के मध्य वर्ग का प्रतिनिधि शहर है. यहाँ पर होने वाली राजनीतिक हार या जीत के व्यावहारिक रूप से कोई माने नहीं हों पर प्रतीकात्मक अर्थ गहरा होता है. यहाँ से उठने वाली हवा के झोंके पूरे देश को प्रभावित करते हैं.हाल में दिल्ली गैंगरेप के ख़िलाफ़ और उसके पहले अन्ना हज़ारे के आंदोलन की ज़मीन देश-व्यापी नहीं थी पर दिल्ली में होने के कारण उसका स्वरूप राष्ट्रीय बन गया. इसकी एक वजह वह क्लिक करें ख़बरिया मीडिया है, जो दिल्ली में निवास करता है.
एचटी-सीफोर के अनुसार दिल्ली में भाजपा को 32 फ़ीसदी, कांग्रेस को 34 फ़ीसदी और ‘आप’ को 21 फ़ीसदी वोट मिलेंगे. ‘आप’ के अनुसार दिल्ली में भाजपा को 23, कांग्रेस को 24 और ‘आप’ को 32 फ़ीसदी वोट मिलेंगे.तीन कोण के मुक़ाबले में 32 फ़ीसदी वोट आराम से पूर्ण बहुमत दिलाते हैं. उत्तर प्रदेश में पिछले विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 30 फ़ीसदी के आसपास वोटों से अच्छा ख़ासा बहुमत हासिल कर लिया.सन 2008 के दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस को 40.31 और भाजपा को 36.34 फ़ीसदी वोट मिले थे. तब आमने-सामने का मुक़ाबला था.इस बार तीसरी पार्टी के आने का क्या असर होगा, किसके वोट किसके पास जाएंगे और स्विंग के कारण सीटों पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा इसे किसी ने स्पष्ट करने की कोशिश नहीं की है.टाइस्म नाउ-सीवोटर के अनुसार ‘आप’ को 16 फ़ीसदी वोट मिलेंगे.बसपा का ज़िक्र ही नहींइनमें से कोई भी बसपा के बारे में बात नहीं कर रहा जिसे पिछली बार 14.04 फ़ीसदी वोट मिले थे और जिसके वोट खिसकना आसान नहीं है.
इसका एक ही तरीक़ा है-पारदर्शिता. यदि सभी एजेंसियां टी.वी. चैनल और पार्टियां अपने-अपने सर्वे का पूरा का पूरा आंकड़ा अपनी वेबसाइट पर डाल दें तो जनता तय कर लेगी कि कौन सा सर्वे विश्वास करने लायक़ है.‘आम आदमी पार्टी’ ने अपना कच्चा डेटा अपनी वेबसाइट पर रखा है. ‘आप’ ने तीन बार सर्वे कराया- फ़रवरी में, अगस्त के अंत में और तीसरा अभी चल रहा है.पहले दो सर्वे पूरी दिल्ली की स्तर पर कराए गए जबकि तीसरा सभी 70 विधानसभाओं के स्तर पर अलग-अलग कराया जा रहा है.इस तीसरे सर्वे में 70 में से केवल 22 विधानसभा क्षेत्रों के नतीजे आए हैं. पहले सर्वे में टोटल सैम्पल साइज़ 3310 था. दूसरे में 3325 और तीसरे में हर विधानसभा स्तर पर 500-500 का सैम्पल लिया जा रहा है. अंततः 35000 का सैम्पल पूरे दिल्ली के स्तर पर लिया जाएगा.‘आप’ के अनुसार फ़रवरी में भाजपा को मिलने वाले वोट 35, कांग्रेस को 35 और आप को 14 फ़ीसदी थे, जो अगस्त में क्रमशः 31, 26 और 27 फ़ीसदी और सितम्बर में 23, 24 और 32 फ़ीसदी हो गए. यानी ‘आप’ सबसे आगे है.
इसके अनुसार बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 41 फ़ीसदी दिल्लीवासियों की पसंद हैं. दूसरा स्थान शीला दीक्षित(25%) और तीसरा विजय गोयल (20%) का है. साथ ही 41 फ़ीसदी लोग राजधानी में ‘आप’ की सरकार बनते देखना चाहते हैं.बेशक ‘आप’ ने पिछले एक साल में दिल्ली में लगातार अपनी उपस्थिति बनाए रखी है. यह सर्वे उसके आंतरिक उपभोग के लिए नहीं है, बल्कि प्रचार के लिए है. महत्वपूर्ण यह है कि उसके निष्कर्ष दूसरी संस्थाओं के निष्कर्षों से काफ़ी अलग हैं. महत्वपूर्ण यह भी है कि दूसरी संस्थाओं के निष्कर्ष भी एक-दूसरे के विपरीत हैं.कांग्रेस ही जीतेगी