गद्दाफी ने 1952 के आसपास मिस्र के प्रसीडेंट गमल अब्देल नसीर से प्रेरणा ली और 1956 में मंउ इजराइल विरोधी आंदोलन में भाग भी लिया. उनकी पढ़ाई लिखाई भी मिस्र में ही हुई थी.


गद्दाफी 1960 के दशक में राजा के खिलाफ क्रांति और तख्ता पलट कर लीबिया के शासक बन गए थे. 1 सितंबर 1969 को उन्होने लीबिया की सत्ता संभाल ली थी.अपने 41 सालों के शासन में के दौरान उन्होने कई ऐसे कामों को अन्जाम दिया था जिससे कि उनके फालोअर्स सारे अरब जगत में बन गये थे. वे किसी अरब देश में सबसे अधिक समय तक राज करने वाले तानाशाह के रुप में भी जाने जाते  हैं. उन्होंने खुद को को टार्च बियरर और किंग आफ द किंग घोषित कर रखा था.


माना जाता है कि गद्दाफी ने 1952 के आसपास मिस्र के प्रसीडेंट गमल अब्देल नसीर से प्रेरणा ली और 1956 में मंउ इजराइल विरोधी आंदोलन में भाग भी लिया. उनकी पढ़ाई लिखाई भी मिस्र में ही हुई थी. गद्दाफी ने1960 के शुरुआती दिनों में लीबिया की मिलेट्री एकेडमी में एडमिशन लिया और आगे की एजूकेशन यूरोप में पूरी की. लिबिया क्रांति के दौरान उन्होंने कमान संभाली थी.

गद्दाफी ने अपने शासन के दौरान ढ़ेरो समर्थक बनाए मगर उनके दुश्मनों की भी कमी नहीं थीय. उनके विरोधियों का मानना है कि कर्नल मुअम्मर गद्दाफी एक डिक्टेटर की तरह खुद को लीबिया का सर्वे सर्वा समझने लग गये. उन्होने करप्शन के जरिए काफी सारा पैसा कमाया और विदेशी बैंकों में जमा कर दिया.जब अरब दुनिया में क्रान्तियों का दौर चला तो लीबिया में भी लोग उनके खिलाफ सड़कों पर उतर आए. दिसंबर 2010 में ट्यूनीशिया की राजनीतिक क्रांति और फिर मिस्र में प्रदर्शनों से गद्दाफी की जड़ें भी हिल गई थीं. हुस्नी मुबारक के सत्ता से बाहर जाने के बाद से गद्दाफी पर भी सत्ता छो़ड़ने का दबाव बनने लगा था. अपने तानाशाही तरीकों के चलते वे शायद समय को भांप नहीं सके और अन्त में उन्हे हार का मुह देखना पड़ा. 

Posted By: Divyanshu Bhard