मक़बूल फ़िदा हुसैन भारत के मशहूर कलाकारों में से हैं. लेकिन नाम के साथ उन्हें आलोचनाएं भी ख़ूब मिलीं. वे एक ऐसे शख़्स रहे जो चर्चित भी रहे और विवादित भी.


ये  मक़बूल फ़िदा हुसैन की लोकप्रियता ही थी कि वे हर तरह के धार्मिक और सामाजिक चरमपंथ के शिकार हुए. लेकिन इन सबसे बेपरवाह रहे.मक़बूल फ़िदा हुसैन का जन्म हर जगह 1915 बताया जाता है लेकिन उनके पासपोर्ट के अनुसार उनका जन्म 1913 में हुआ था. मुंबई की इंस्टीट्यूट ऑफ़ कंटेम्प्ररी आर्ट्स, आसीआईए, में 26 सितंबर से नौ अक्तूबर तक उनकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लग रही है जिसमें हुसैन की बेटी ने कलाकारों को हुसैन की 100वीं सालगिरह कहने की अनुमति दी है.हुसैन जीवन भर अपनी प्रशंसा और  आलोचनाओं से ऊपर उठे हुए इंसान रहे.एक बार आपातकाल के दौरान उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पेंटिंग बनाई तब, या जब उन्होंने माधुरी दीक्षित (जिनके साथ उन्होंने लगभग भूला दी जाने वाली फ़िल्म 'गजगामिनी' बनाई) के प्रति अपनी दीवानगी ज़ाहिर कर अपना मज़ाक बनाया.'पेंटर या क़साई'
एक इस्लामी संगठन 'ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल' ने भी उनकी फ़िल्म 'मीनाक्षीः ए टेल ऑफ़ थ्री सिटीज़' के एक गीत 'नूर-उन-अला-नूर' से नाराज़गी जताई.इस गीत को ईश-निंदा माना गया. हुसैन ने इस गाने को हटाने की बजाय इस फ़िल्म को ही सिनेमाघरों से हटा लिया.


साल 2006 में, इंडिया टुडे, में 'आर्ट फॉर मिशन कश्मीर' के लिए एक विज्ञापन छपा. इसमें हुसैन की एक पेंटिंग बनी थी जिसमें भारत के मानचित्र पर एक नंगी औरत की पेंटिंग बनी थी.उस औरत के पूरे जिस्म पर भारत के राज्यों के नाम थे. हिंदू जागृत्ति समिति और विश्व हिंदू परिषद् (वीएचपी) ने इसे अश्लील मानते हुए विरोध किया. उन्होंने हुसैन पर माफ़ी मांगने का दबाव डाला.निर्वासित जीवनबाद में सुप्रीम कोर्ट ने हुसैन के ख़िलाफ़ सारे आरोपों को यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि पेंटिंग एक कलाकृति मात्र है.लगातार विरोध प्रदर्शन, मुकदमे, कष्ट और मौत की धमकी ने हुसैन का जीना इतना मुहाल किया कि वे लंदन और दोहा में निर्वासित जीवन बिताने लगे. अंततः उन्होंने 2010 में  क़तर की नागरिकता भी ले ली.हुसैन पर हो रहे हमलों की कला बिरादरी चाहे जितनी आलोचना करे, देश का मिज़ाज लगातार असहिष्णु होता जा रहा है.आज ऐसा माहौल बन गया है कि दूसरे कलाकारों की प्रदर्शनियों पर भी धार्मिक समूहों के हमले और तोड़फोड़ होने लगे हैं.लगता है कि हुसैन विवादों के प्रतीक बन गए हैं. उनकी छवि के साथ यह हमेशा जुड़ा रहेगा. आज उन्हें उस जगह देखा जाता है जहां उदारता और असहिष्णुता टकराती है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh