मैं अब दिल्ली नहीं जाऊँगाः अन्ना हजारे
खुद अन्ना हजारे अब राजनीति के संबंध में कोई बात नहीं करना चाहते और जनलोकपाल के लिए अपनी लड़ाई स्वयं आगे ले जाना चाहते हैं.पुणे से लगभग 80-90 किलोमीटर दूर रालेगांव में मैं जब उतरता हूं तो वही नजारा देखने को मिला जो महाराष्ट्र के किसी भी आम गांव में होता है. अन्ना हजारे की संस्था 'हिंद स्वराज ट्रस्ट' गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर है. वहां पहुंचने पर पता चलता है कि अन्ना से मिलने के लिए पास लेना पड़ता है.संस्था के ऑफ़िस से पास लिया तो पता चला उस दिन मैं केवल आठवां व्यक्ति था जो अन्ना से मिलने आया था. अन्ना के कमरे तक जाने पर पता चलता है कि उनकी तबियत खराब है. सुरक्षा के लिए तैनात एक पुलिसकर्मी बताता है, "आप उन्हें पांच बजे मिल सकते हैं."
पूरा दिन गुजारने के बाद मैं संस्था में फिर से पहुंचता हूं. दिल्ली से आए कुछ लोग वहां मिलते हैं.
अन्ना के सहायकों में से एक व्यक्ति सुबह की एक घटना बताता है, "दिल्ली के एक कर्मचारी ने आकर संस्था के अहाते में अनशन शुरू किया था. केजरीवाल को समर्थन देने की उसकी मांग थी. पुलिस के हस्तक्षेप के बाद उस कार्यकर्ता को वहां से हटाया गया. दिल्ली से कई लोग पिछले हफ़्ते भर से आ रहे है. सीडी कांड से संबंधित कुमार विश्वास भी उनमें से एक थे."ज़मीन-आसमान का फर्क
अन्ना के सहायक उन्हें बताते है, "अन्ना अब आराम करने गए हैं और वे उनसे कल मिल सकते हैं. मैं फिर गांव के उसी अंधेरे चौक पर लौटता हूं जहां दोपहर को उतरा था. वहां वैसी ही शांति थी जैसी किसी भी गांव में अमूमन होती है."