भारतीय राजनेताओं का 'गुप्त जीवन'
एकाध अपवादों को छोड़ कर भारतीय राजनीतिज्ञों ने इस क़रार को निभाया भी है. इसकी शायद वजह ये है कि हर कोई शीशे के घर में रह रहा है लेकिन गवर्नेंस नाऊ के संपादक अजय सिंह इसके पीछे दूसरा कारण मानते हैं.वो कहते हैं, ''शीशे के घर तो विदेश में भी होते हैं, लेकिन वहाँ तो पत्थर फेंके जाते हैं. यहाँ का एक सामंती अतीत है जहाँ हम मान कर चलते हैं कि राजा को कुछ चीज़ें अधिकार में मिली हुई हैं."वो कहते हैं, "एक इटालियन शब्द है ओमार्टा जिसका अर्थ है कि अपराधियों में एक गुप्त समझौता होता है, जिसके अनुसार हम आपके बारे में नहीं बताएंगे और न ही आप हमारे बारे में बताएंगे. भारतीय राजनीति में भी कुछ कुछ ओमार्टा जैसा है. कुछ मामलों में चुप्पी इतनी ज़्यादा है और उन बातों पर चुप्पी है जहाँ बिल्कुल नहीं होनी चाहिए."ब्रह्मचर्य का प्रयोग
मीडिया और राजनीतिज्ञों के बीच भी उनकी निजी जिंदगी को ले कर एक तरह का सामाजिक समझौता हुआ दिखता है कि एक हद के बाद उन पर सार्वजनिक चर्चा या बहस नहीं होगी. भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, भाई-भतीजावाद के मुद्दों पर भले ही आम लोग या मीडिया बहुत ही नृशंस हो लेकिन निजी जीवन के तथाकथित स्केंडल्स को मीडिया नज़रअंदाज़ ही करता है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पूर्व संपादक इंदर मल्होत्रा कहते हैं, "तमाम दुनिया में ये हो गया है कि हर चीज़ खुली है. सोशल मीडिया भी है. नेताओं के निजी जीवन के बारे में अख़बारों में बिल्कुल नहीं छपता था. रेडियो और टेलीविजन सरकार के थे."
इस बारे में इंदर मल्होत्रा ने बताया, "एक बार जब फ़िरोज़ नहीं रहे और इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बन गईं तो इमरजेंसी से पहले हम्मी प्रधानमंत्री कार्यालय में किसी बात पर एक अर्ज़ी देने आईं. जब वो प्रधानमंत्री कार्यालय से निकल कर बाहर जा रही थी तो उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ऑफ़िस में घुस रहे थे. इंदिरा गाँधी ने बरुआ से कहा कि बाहर नज़र डालो. जिस औरत को तुम देख रहे हो, इस औरत के लिए फ़िरोज़ ने सारी ज़िंदगी हमारी ख़राब कर दी."राजीव-सोनिया की प्रेम कहानीराजीव गांधी और सोनिया गांधी के प्रेम प्रसंग पर भी राष्ट्रीय मीडिया में बहुत कम चर्चा हुई है. राशिद किदवई ने ज़रूर सोनिया गांधी पर लिखी जीवनी में इस मुददे पर अपनी नज़र दौड़ाई है.क़िदवई ने बीबीसी को बताया, "शुरू में सोनिया गाँधी को ये भी पता नहीं था कि राजीव गांधी जवाहरलाल नेहरू के नवासे हैं. वो पहली बार केम्ब्रिज में एक ग्रीक रेस्तराँ ‘वरसिटी’ में मिले थे. वो अपनी एक दोस्त के साथ बैठी हुई थीं. राजीव गाँधी भी अपने दोस्तों के साथ थे."
पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेई के ‘परिवार’ पर दबेज़ुबान कुछ चर्चा भले ही होती रही हो लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता पर बिल्कुल फ़र्क नहीं पड़ा. वाजपेई ने कॉलेज के दिनों की अपनी दोस्त राज कुमारी कौल के साथ विवाह नहीं किया लेकिन उनकी शादी के बाद उनके पति के घर रहने लगे.सैवी पत्रिका को दिए गए एक साक्षात्कार में श्रीमती कौल ने कहा, "मैंने और अटल बिहारी वाजपेई ने कभी इस बात की ज़रूरत नहीं महसूस की कि इस रिश्ते के बारे में कोई सफ़ाई दी जाए.''श्रीमती कौल का कुछ दिनों पहले निधन हो गया लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में उनकी शख्सियत के बारे में इसलिए चर्चा नहीं हुई क्योंकि उनके बारे में लोगों को कुछ पता ही नहीं था. बीबीसी ने श्रीमती राजकुमारी कौल की दोस्त तलत ज़मीर से बात की.
तलत कहती हैं, ''वो बहुत ही ख़ुबसूरत कश्मीरी महिला थीं... बहुत ही वज़ादार. बहुत ही मीठा बोलती थीं. उनकी इतनी साफ़ उर्दू ज़ुबान थी. मैं जब भी उनसे मिलने प्रधानमंत्री निवास जाती थी तो देखती थी कि वहाँ सब लोग उन्हें माता जी कहा करते थे. अटलजी के खाने की सारी ज़िम्मेदारी उनकी थी. रसोइया आ कर उनसे ही पूछता था कि आज खाने में क्या बनाया जाए. उनको टेलिविजन देखने का बहुत शौक था और सभी सीरियल्स डिसकस किया करती थीं. वो कहा करती थी कि मशहूर गीतकार जावेद अख़्तर जब पैदा हुए थे तो वो उन्हें देखने अस्पताल गई थीं क्योंकि उनके पिता जानिसार अख़्तर ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में उन्हें पढ़ाया करते थे. वो जावेद से लगातार संपर्क में भी रहती थीं.''मुलायम की दूसरी शादी