दिल्ली से यूपी को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर क़रीब 130 किलोमीटर चलने के बाद बुढ़नपुर क़स्बा आता है. यहीं से घुमावदार सड़क सहसपुर अलगीनगर गाँव जाती है.


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले के इसी गाँव में किसान परिवार में पैदा हुए मोहम्मद शामी ने टीम इंडिया के तेज़ गेंदबाज़ के रूप में पहचान बनाई है.शामी के अब्बा तौसीफ़ अहमद आज जब उन्हें टीवी स्क्रीन पर विकेट लेकर उछलते देखते हैं, तो उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं. शामी को प्यार से सिम्मी कहा जाता है.सिम्मी बचपन से क्रिकेट के शौकीन रहे हैं. उनके अब्बा बताते हैं, "उसे जहाँ जगह मिलती, वहीं गेंदबाज़ी करने लगता. घर के आँगन में, छत पर, बाहर खाली पड़ी जगह में. 22 गज़ से लंबी हर जगह उसके लिए पिच होती." शामी की रफ़्तार ने बहुत कम उम्र में ही उन्हें आसपास के गाँवों में लोकप्रिय बना दिया. वह स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंटों का आकर्षण होते. शामी खेलने जाते और उनके अब्बा देखने.


गाँव में उनके घर के पीछे क़ब्रिस्तान है और इसी क़ब्रिस्तान की खाली ज़मीन शामी के लिए पहला मैदान बनी. शामी ने यहीं पिच बनाई और गेंदबाज़ी का अभ्यास करने लगे.रफ़्तार

यूपी में मौक़े कम थे. कोच की सलाह पर उन्हें  कोलकाता में क्लब क्रिकेट खेलने के लिए भेज दिया गया. यहाँ शामी ने क्रिकेट का सही प्रशिक्षण लिया. शामी कोलकाता से जब गाँव आते, तो उन्हें प्रैक्टिस के लिए पिच नहीं मिलती.सीमेंट की पिचअभ्यास के लिए उन्होंने गाँव में खाली पड़ी अपनी ज़मीन पर सीमेंट से पिच बनाई. गोबर के उपलों और घूड़ी के बीच शामी प्रैक्टिस करते. सीमेंट की पिच पर उनकी रफ़्तार और भी बढ़ गई. अब समस्या यह पैदा हुई कि किसके साथ खेलकर अभ्यास किया जाए?उन्होंने अपने छोटे भाई मोहम्मद कैफ़ को गेंदबाज़ी की. उनकी रफ़्तार के मुक़ाबले का नतीजा यह हुआ कि कैफ़ ने एक क्रिकेटर के बतौर स्थानीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना ली है.जब हम उनके घर पहुँचे, तो कैफ़ अलीगढ़ में क्रिकेट टूर्नामेंट में हिस्सा लेने गए थे. वह भी बंगाल की ओर से ही क्रिकेट खेल रहे हैं, ट्रायल दे रहे हैं.अंतरराष्ट्रीय करियर23 साल के मोहम्मद शामी टीम इंडिया के लिए चयनित होने से पहले पश्चिम बंगाल की ओर से रणजी क्रिकेट खेलते थे. मात्र 15 फ़र्स्ट क्लास मैच खेलने के बाद ही जनवरी 2013 में उनका चयन टीम इंडिया में हो गया.

छह जनवरी 2013 को दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान पर शामी ने अपना पहला वनडे मैच खेला. शामी ने पहले ही मैच में चार मेडेन ओवर फेंककर अपनी प्रतिभा की झलक दिखला दी थी. डेब्यू मैच में ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय गेंदबाज़ भी बने.सचिन की ऐतिहासिक विदाई सिरीज़ से शामी ने टेस्ट में आगाज़ किया. कोलकाता के ईडन गार्डन पर अपने पहले टेस्ट में नौ विकेट लेकर उन्होंने अपनी रफ़्तार का लोहा मनवाया.शामी इस समय  वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ खेली जा रही वनडे सिरीज़ खेल रहे हैं. कई साल गुज़रने के बाद भी सीमेंट की बनाई उनकी पिच बरक़रार है. अब उनके गाँव के बच्चे इसी पिच पर क्रिकेट खेलते हैं.शामी के अब्बा तौसीफ़ अहमद कहते हैं, "शामी ने अकेले इस पिच पर पसीना बहाया है. कभी-कभी तो कोई भी नहीं होता था और वह अकेला ही गेंदबाज़ी करता रहता. पीछे काँटों में गेंद चली जाती, तो निकालने के लिए जद्दोजहद करता. उसने पिच के पास पथे गोबर को नहीं देखा, घूड़ के ढेर भी नहीं देखे. बस अभ्यास करता रहा. उसी मेहनत का नतीजा है कि वह आज टीम इंडिया के लिए खेल रहा है."जुनून
बच्चों को खेलता देखकर तौसीफ़ अहमद कहते हैं, "शामी अपने जुनून के बल पर टीम इंडिया में पहुँचा है. हो सकता है इनमें से कोई बच्चा कल अपने जुनून के दम पर दुनिया में नाम करे. ज़रूरत बस एक मौक़े की है. शामी को वह मौक़ा बंगाल ने दिया. हो सकता है इन्हें यूपी में ही मौक़ा मिल जाए."हालाँकि शामी के अब्बा चाहते हैं कि अमरोहा में कम से कम एक छोटा स्टेडियम बने, जिससे इलाक़े के अन्य बच्चों को अभ्यास करने के लिए समझौता न करने पड़े. राहुल द्रविड़ ने एक बार कहा था कि भारतीय क्रिकेट टीम की अगली पीढ़ी के खिलाड़ी छोटे शहरों और कस्बों से आएंगे. गाँव के क़ब्रिस्तान की खाली ज़मीन पर बनी पिच से लेकर टीम इंडिया तक के मोहम्मद शामी के सफर ने द्रविड़ के इस बयान को सही साबित कर दिया है.शामी के अब्बा के शब्दों में कहें तो उनकी कामयाबी साबित करती है कि जुनून को अगर सही दिशा मिल जाए तो कुछ भी पाया जा सकता है.

Posted By: Subhesh Sharma