राजनीतिक दल न तो आम आदमी को अपने खातों में झांकने का हक देना चाहते हैं और न ही चुनावी मैदान में अपराधियों को खड़ा करने का अपना अधिकार खोने को तैयार हैं. अपराधियों के चुनाव लडऩे पर सुप्रीम कोर्ट की रोक और राजनीतिक दलों को सूचना अधिकार आरटीआइ कानून के दायरे में लाने के केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ पूरी सियासत एकजुट हो गई है. संसद के मानसून सत्र में इन दोनों फैसलों के खिलाफ विधेयक लाकर उन्हें रद करने की तैयारी हो गई है. साफ है कि भ्रष्टाचार और अपराधीकरण से राजनीतिक दल खुद को मुक्त करने के लिए तैयार नहीं हैं.


आरटीआइ से बाहर होंगे दलसरकार ने जिसे जनता के हाथ में ताकत देने का सबसे बड़ा हथियार बताया था, अब उसी से डर गई है. केंद्रीय कैबिनेट ने गुरुवार को तय किया कि राजनीतिक दलों को आरटीआइ कानून के दायरे में आने से रोकने के लिए इस कानून में संशोधन किया जाएगा. सरकार इस मामले पर सभी पार्टियों की राय पहले ही ले चुकी है. मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी इस कानून में संशोधन के सरकार के प्रस्ताव को संसद में समर्थन देने का भरोसा दिलाया है. इस मामले में लगभग सभी राजनीतिक दलों की एक राय है.
हाल में एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्रीय सूचना आयोग ने तय किया था कि सभी छह पार्टियां जिन्हें चुनाव आयोग से राष्ट्रीय दल की मान्यता मिली हुई है, वे इस कानून की परिधि में आते हैं. कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, बसपा और राकांपा राष्ट्रीय दल हैं. इनमें सिर्फ भाकपा ने इस आदेश का सम्मान करते हुए आरटीआइ आवेदन के जवाब में सूचना मुहैया करवाई है और पार्टी में लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किया है.चुनाव लड़ते रहेंगे अपराधी


जेल से चुनाव लडऩे पर रोक और दो साल से ज्यादा सजा होने पर सदन की सदस्यता स्वत: खत्म होने वाले सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ संसद के मानसून सत्र में विधेयक लाने के लिए भी सरकार तैयार है. गुरुवार को मानसून सत्र के सुचारु संचालन के उद्देश्य से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में राजनीति का अपराधीकरण रोकने के संदर्भ में आया सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चर्चा के केंद्र में रहा. सभी राजनीतिक दलों ने एक सुर में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असहमति जताई. जेल में बंद नेताओं को चुनाव नहीं लडऩे दिए जाने के राजनीतिक दुरुपयोग की चिंता सबको खूब सताई. कांग्रेस, भाजपा, वाम दल, सपा, राजद समेत सभी राजनीतिक दलों ने चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से जल्द से जल्द जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन संबंधी विधेयक लाने की मांग की. संसद की सर्वोच्चता का बहाना

बैठक के बाद संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कहा, ‘सभी दलों में इन निर्णयों को लेकर चिंता है और सबने इस स्थिति का समाधान व संसद सर्वोच्चता बरकरार रखने की मांग की. सरकार इस मांग पर विचार करते हुए कोई कदम उठाएगी.’ संसद और विधायिका की सर्वोच्चता कायम रखने के लिए विधेयक लाने से भी उन्होंने इन्कार नहीं किया और कहा कि इसके लिए मानसून सत्र का समय बढ़ाया जा सकता है. भाजपा से रविशंकर, वाम दलों से सीताराम येचुरी व बासुदेव भट्टाचार्य, राजद से लालू प्रसाद यादव आदि सभी नेताओं ने इस मामले में कमलनाथ के सुर में सुर मिलाया.‘‘कैबिनेट का फैसला जनता से वादा खिलाफी है. इससे यही धारणा मजबूत होती है कि ये राजनीतिक दल अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं.’’-अरुणा राय (सामाजिक कार्यकर्ता)

Posted By: Satyendra Kumar Singh