दिल्‍ली के लालकिले के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा. स्‍वतंत्रता दिवस हो या फिर गणतंत्र दिवस इस इमारत पर जब तक तिरंगा नहीं फहराया जाता इन दोनों ही राष्‍ट्रीय त्‍योहारों के मायने अधूरे रह जाते हैं. ऐसा हो भी क्‍यों न आखिर यह इमारत मुगल काल से लेकर आजाद भारत तक की सभी अच्‍छी और बुरी घटनाओं की चश्‍मदीद गवाह जो रही है. आज 26 जनवरी के दिन इस इमारत में सिमटे भारत के इतिहास के हर पन्‍ने को पलट कर कुछ खास बातों पर आपका ध्‍यान केंद्रित करने की कोशिश कर रहे हैं.

1. मुगल बादशाह शाहजहां की हुकूमत में बनवाई गई इस एतिहासिक इमारत की बुनियाद सन् 1639 में रखी गई थी.  इसके निर्माण में नौ वर्ष का समय लगा था.  इसके निर्माण में ज्यादातर लाल पत्थरों का इस्तेमाल किए जाने के कारण ही इसे 'लाल किला' नाम दिया गया.


2.  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 के दौरान अंग्रेजी हुक्मरानों ने आजादी के मतवालों पर कहर ढहाने के लिए इस भव्य किले के कई हिस्सों को भी जमींदोज कर वहां सेना की बैरकें और दफ्तर बना दिए थे और इस किले को रोशन करने वाले मुगल सल्तनत के आखिरी बादशाह बहादुरशाह जफर को भी कैद कर रंगून भेज दिया था.


3.देश में बीते छह दशक से जारी जश्न-ए-आजादी के सिलसिले में लाल किले की प्राचीर से सबसे ज्यादा 17 बार तिरंगा लहराने का मौका प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिला, वहीं उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने भी राष्ट्रीय राजधानी स्थित सत्रहवीं शताब्दी की इस धरोहर पर 16 बार राष्ट्रध्वज फहराया.


4. आजाद भारत के इतिहास में गुलजारी लाल नंदा और चंद्रशेखर ऐसे नेता रहे, जो प्रधानमंत्री तो बने लेकिन उन्हें लाल किले पर तिरंगा फहराने का एक भी बार मौका नहीं मिल सका.


5. वर्ष 2004 के आम चुनाव में राजग की हार के बाद संप्रग सत्ता में आया और मनमोहन ने 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। तब से अब तक वह पांच बार लालकिले पर लाल किले पर राष्ट्रध्वज फहरा चुके हैं.

Posted By: Garima Shukla