सहारा समूह भारत में आम लोगों के लिए सेविंग का साधन था. पिछले 15 सालों से यह साधन लगातार बढ़ता गया.


इस बीच में दूसरी कंपनियां भी आईं, लेकिन वे गिरती गईं और सहारा बढ़ता गया. सहारा का आत्मविश्वास इतना बढ़ा कि उन्होंने अपना टैगलाइन ही बना दिया- भारत है हमारा, हम हैं सहारा.सहारा ने अपना कारोबार कई क्षेत्रों में बढ़ा लिया. पहले की बात करें तो सहारा कभी डिफाल्टर नहीं रहा है.डिफाल्टर होने का यह मामला दस साल पुराना है. सेबी की जांच पिछले चार-पांच साल पुरानी है.हालांकि इस दौरान सहारा बड़ी कंपनी बन चुका है और काफ़ी आगे जा चुका है. सहारा के पास आधारभूत ढांचा है.कंपनी होटल कारोबार में है, मीडिया में है. इस समूह ने हॉकी और क्रिकेट की नेशनल टीम को स्पांसर किया है.'स्टेट ऑफ़ माइंड'सहारा की शादियों में 200 से 250 करोड़ रुपए का ख़र्चा होता है. पूरा बॉलीवुड वहां मौजूद रहता है. अमिताभ बच्चन जैसे लोग मेहमानों की आवभगत करते नज़र आते हैं.


एक समय ऐसा भी आया जब देश में सहारा एक 'स्टेट ऑफ़ द माइंड' हो गया था. जैसे गाँधी और अंबानी देश में स्टेट ऑफ़ माइंड बन गए.लेकिन उनके ख़िलाफ़ शिकायतें बढ़ती गईं. सहारा की संपत्ति, निवेश और अधिग्रहण सवालों के घेरे में आए.

सेबी के मुताबिक़ सहारा ने लोगों के पैसे नहीं लौटाए और निवेशकों में ढेरों लोगों का अस्तित्व ही नहीं है.

सेबी ने अपनी जांच में सहारा को दोषी माना है.सहारा समूह ने सेबी के दफ़्तर के सामने कागज़ातों से भरे ट्रकों की लाइन लगा दी है.लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह की दलीलों को नहीं माना और सुब्रत रॉय बेहद मुश्किल में हैं.सुब्रत रॉय ने यह दावा किया कि उनकी माता जी बीमार हैं और वह अदालत में नहीं आ पाएंगे और इसलिए वह अदालत में नहीं आ पाए. लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को उनकी दलील पसंद नहीं आई.सेबी के मुताबिक़ सहारा समूह को चौबीस हजार करोड़ रुपए लौटाने हैं. इसमें सहारा ने 5,110 करोड़ रुपए दे दिए हैं. सहारा के मुताबिक़ उन्होंने ज़्यादा पैसा जमा करा दिया है.लेकिन सेबी के मुताबिक़ पहली किस्त 14 हज़ार करोड़ रुपए की है और दूसरी किस्त 10 हज़ार करोड़ रुपए की है. उसके ऊपर 15 फ़ीसदी ब्याज देना होगा.इससे सहारा के रियल एस्टेट की संपत्तियों पर असर पड़ेगा. मुंबई और पुणे हाइवे के पास सहारा की संपत्ति एंबी वैली, यूके और यूएस के होटल एवं दिल्ली और नोएडा की रियल एस्टेट संपत्तियां और सहारा के मौजूदा कारोबार पर असर पड़ेगा.
कोई भी नॉन बैकिंग फाइनेंसियल कंपनी के फाइनेंस पर धक्का पड़ता है तो उनके ऑपरेशन पर गंभीर असर पड़ता है.

Posted By: Subhesh Sharma