सरकार फैसला करेगी कि प्रोन्नत मुख्य आरक्षियों को यह दायित्व दिया जाए या नहीं

ALLAHABAD: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक पुलिस उपनिरीक्षकों की तरह मुख्य आरक्षी (प्रोन्नत वेतनमान) को भी छोटे अपराधों की विवेचना का अधिकार देने पर राज्य सरकार को दो माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यह निर्णय डीजीपी उत्तर प्रदेश के 21 फरवरी 15 व एसएसपी मेरठ के 12 मार्च 15 के आदेशों की उपेक्षा करते हुए लिया जाय।

यह आदेश जस्टिस एमसी त्रिपाठी ने मुख्य आरक्षी रामेश्वर त्यागी व 164 अन्य की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। याची के अधिवक्ता विजय गौतम का कहना है कि याचीगण हेडकांस्टेबल हैं जो 26 साल से सेवारत है। इन्हें उपनिरीक्षक का वेतनमान दिया गया है। 15 सितंबर 97 के शासनादेश के तहत इन्हें विशेष अधिकार दिये गये। इस संबंध में भ्रम की स्थिति राज्य सरकार ने 4 नवंबर 15 की अधिसूचना से दूर कर दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार को डीजीपी के आदेश की अनदेखी करते हुए याचियों की मांगों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।

शक्तियां छीने जाने को चुनौती

उल्लेखनीय है कि इस अधिसूचना के तहत जेबकतरी, साइकिल, बिजली के तार, पशु की चोरी, रेलवे प्लेटफार्म पर चोरी एवं 25 हजार रुपये मूल्य की चल संपत्ति की चोरी, मोटरयान अधिनियम एवं आयुध अधिनियम की धारा 25 के तहत अपराधों की विवेचना का अधिकार मुख्य आरक्षियों (प्रोन्नत वेतनमान) को सौंपे जाने की अधिकारिता दी गयी है। डीजीपी के आदेश से इन शक्तियों को वापस लिया जा रहा है जिसे चुनौती दी गयी थी।

Posted By: Inextlive