-शारदीय नवरात्र महोत्सव(17 से 24 अक्टूबर)

-भगवती देवी दुर्गा का आगमन--अश्व पर

-फल:- नेताओं और शासकों को कष्ट एवं अनेक नेता सत्ताच्युत हों

-भगवती देवी दुर्गा का गमन-- दोला पर

-फल- संक्रामक रोगो में वृद्धि

कलश स्थापना मुहूर्त

-प्रात: काल 7:48 से 9:14 बजे शुभ के चौघडि़या मुहूर्त में

-(श्रेष्ठ मुहूर्त)मध्यान्ह में 12:06 से 12:51 बजे तक अभिजित एवं चर, लाभ, अमृत के चौघडि़या मुहूर्त में

बरेली:

शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं। इसके लिए सूर्योदय कालीन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र प्रारम्भ अथवा घट स्थापना की जाती है। दो दिन तिथि व्याप्ति या अव्याप्ति की स्थिति में नवरात्र पहले ही दिन प्रारम्भ होते हैं। यदि प्रतिपदा सूर्योदय के पश्चात एक मुहुर्त पहले ही समाप्त हो रही है, तो नवरात्र पहले ही दिन प्रारम्भ होते हैे। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा का कहना है कि इस वर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा का प्रारम्भ 17 अक्टूबर से हो रहा, शनिवार को प्रतिपदा तिथि रात्रि 9:09 बजे तक रहेगी। इस दिन चित्रा नक्षत्र पूर्वाह्न 11:51 बजे तक है।

दोपहर 12:28 बजे तक है अभिजित मुहूर्त

शास्त्रों के अनुसार चित्रा नक्षत्र के आद्य चर्तुथांश रहित समय में नवरात्र घट स्थापना की जा सकती है। चित्रा नक्षत्र की समाप्ति 17 अक्तूबर को ही पूर्वाह्न 11:51 बजे हो रही है, प्रातकाल 7:48 बजे से 9:14 बजे तक शुभ का चौघडि़या एवं चर, लाभ,अमृत का चौघडि़या मध्यान्ह 12:05 से अपराह्न 4:21 बजे के साथ सर्वार्थसिद्धि योग पूर्वाह्न 11:51बजे से सम्पूर्ण रात्रि एवं अमृत योग भी प्रात: 06:24 बजे से रात्रि 9:09 बजे तक रहेगा। इस दिन शुभ का चौघडि़या मुहूर्त प्रात: 7:48 बजे से 9:14 बजे तक रहेगा तदोपरान्त मध्यान्ह 12:05 से अपराह्न 4:21 बजे तक चर, लाभ,अमृत का चौघडि़या रहेगा। इस दिन का अभिजित मुहूर्त काल भी मध्यान्ह 12:06 बजे से 12:51 बजे तक रहेगा। द्विस्वाभाविक लग्न प्रात: 10:21बजे से मध्यान्ह 12:28 बजे तक रहेगी। इस दिन तुला की 30 मुहर्ती साम्यर्ध संक्रांति प्रात: 7:05 बजे से लग रही है जिसका पुण्य काल सूर्योदय से 11:51 बजे तक रहेगा। कलश स्थापन का श्रेष्ठ मुहूर्त मध्यान्ह 12:05 बजे से 12:51 बजे के बीच करना अति श्रेष्ठ रहेगा। यद्यपि शुभ के चौघडि़या में भी प्रात: काल 7:48 बजे से 9:14 बजे तक घट स्थापना की जा सकती है क्योंकि इस वर्ष 17 अक्टूबर शनिवार को प्रतिपदा तिथि की प्रथम 16 घडि़यां लगभग प्रात: काल 7:25 बजे तक हैं।

24 महाअष्टमी

सर्वार्थसिद्धि एवं सिद्धि योग में करें महाअष्टमी पूजन सूर्योदय कालीन आश्विन शुक्ल अष्टमी को श्रीदुर्गाष्टमी मनाई जाती है। यह अष्टमी सूर्योदय बाद कम से कम एक घटी व्यापिनी तथा नवमी तिथि से युक्त होना चाहिए। सप्तमीयुता अष्टमी को सर्वथा त्याग देना चाहिए। अत: यह तिथि 24 अक्टूबर , शनिवार को सूर्योदयान्तर एक घटी तक विधमान होने से इस दिन ही श्रीदुर्गाष्टमी मनाई जाएगी। यदि अष्टमी एक घटी से पूर्ण समाप्त हो या नवमी का क्षय हो तो पहले दिन मनाई जाती है। यदि अष्टमी दो दिन सूर्योदय व्यापिनी हो या न हो तो दोनो ही स्थिति में यह पहले ही दिन मनाई जाती है।

अति विशेष

जहां सूर्योदय प्रात: 6:35 बजे अथवा इससे पहले होगा, वहां दुर्गाष्टमी(महाअष्टमी) 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। जहां सूर्योदय 6:35 के बाद होगा वहां दुर्गाष्टमी 23 अक्टूबर शुक्रवार को मनाई जाएगी।

दो प्रकार से मनाई जाती है नवमी

महानवमी:-(24 अक्टूबर) आश्विन शुक्ल नवमी के दिन महानवमी होती है। यह दो प्रकार से मनाई जाती है। जिसमें पूजा एवं उपवास हेतु व बलिदान हेतु पूजा-उपवास के लिए नवमी अष्टमी विद्दा तथा जो सम्पूर्ण सांय काल को व्याप्त करे, ली जाती है, जबकि बलिदान हेतु नवमी दशमी विद्दा ली जाती है। इस दिन 24 अक्तूबर को महानवमी का व्रत, हवन, आयुध पूजा,महानवमी कुमारी पूजा,उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में सरस्वती देवी के निमित्त बलिदान आदि होगी तथा श्रवण नक्षत्र में सरस्वती विर्सजन होगा, श्रवण नक्षत्र पूरे दिन रात रहेगा।

कलश स्थापना

पूजन सामग्री:- रोली, मौली, केसर, सुपारी, चावल, जौ, सुगन्धित पुष्प, इलायची, लौंग, पान, सिन्दूर, श्रृगांर सामग्री, दूध, दही, शहद, गंगाजल, शक्कर, शुद्ध घी, जल, वस्त्र, आभूषण, बिल्व पत्र, यज्ञोपवीत, तांबे का कलश, पंचपात्र, दूब, चन्दन, इत्र, चौकी, बिछाने वाला लाल वस्त्र, दुर्गा जी की प्रतिमा, फल, धूप-दीप, नैवेध, अबीर, गुलाल, पिसी हल्दी, जल, शुद्ध मिट्टी, थाली, कटोरी, नारियल, दीपक, रूई आदि।

कैसे करें कलश स्थापन

सर्वप्रथम एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर, चौकी के समक्ष कलश स्थापना के लिए मिट्टी की वेदी बनायें। जिसमें भीगे हुये जौ के दाने बिखेर दें, वेदी के बीच में कलश स्थापना से पूर्व एक अष्टदल कमल बनायें। कलश के अन्दर तीर्थ जल भर दें। उसके ऊपर पंच पल्लव लगाकर उस पर किसी मिट्टी के पात्र में चावल भरकर रख दें। कलश के कण्ठ में कलावा बांधे इसके बाद सूखे नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर कलश के ऊपर रखें कटोरे में रख दें। नारियल को सीधा खड़ा करके रखना है।

Posted By: Inextlive