मीडिया में बनारस को आपने इन दिनों जितनी बार सुना और देखा होगा उतना शायद पिछले पाँच साल में कुल मिलाकर भी नहीं हुआ होगा. इसीलिए एक छात्रा ने शहर के माहौल को 'पीपली लाइव' नाम दे दिया.


पर जब ख़ुद विपक्षी गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और इस चुनाव के केंद्रीय व्यक्तित्व से बन गए  नरेंद्र मोदी वहाँ से उम्मीदवार हों तो ऐसा होने पर आश्चर्य कैसा?फिर बात सिर्फ़ मोदी तक भी तो सीमित नहीं. उन्हें चुनौती देने वाले भी तो राजनीति में सबसे तेज़ी से उभरे शख़्स  अरविंद केजरीवाल हैं.ऐसे में देश-दुनिया की उत्सुकता होना स्वाभाविक ही है. मगर जिस तरह मीडिया ने चुनाव के अंतिम चरण में वहाँ डेरा डाला, उसे देखते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय की छात्रा अंशा ने बनारस को 'पीपली लाइव जैसा चुनावी सर्कस' बता दिया.कैंपस हैंगआउटबीबीसी  कैंपस हैंगआउट की अंतिम कड़ी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रबंध शास्त्र संकाय में आयोजित हुई. छात्र-छात्राओं ने अपने मुद्दे खुलकर बेबाक तरीक़े से गिनाए.


दर्शन कुमार झा ने इस माहौल को 'ग्लैमरस सपने' का नाम दिया, जिसका टूटना उनके मुताबिक़ तय है तो वहीं सुनील कुमार सोनकर ने बनारस को आज भी मध्यकालीन भारत का शहर बताया."बनारस एक चुनावी सर्कस में बदल गया है, ये पूरी तरह पीपली लाइव हो गया है. मगर चुनाव के बाद ये फ़ोकस जल्द ही ख़त्म हो जाएगा."-अंशा, छात्रा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

अंशा को इस चुनाव से बनारस के लिए ज़्यादा उम्मीद नज़र नहीं आती. उन्होंने कहा, "बनारस एक चुनावी सर्कस में बदल गया है, ये पूरी तरह पीपली लाइव हो गया है. मगर चुनाव के बाद ये फ़ोकस जल्द ही ख़त्म हो जाएगा."'पीपली लाइव' वो फ़िल्म थी जिसमें नत्था नाम के किरदार की आत्महत्या की घोषणा के बाद पूरे घटनाक्रम के लाइव कवरेज के लिए मीडिया पर व्यंग्य कसा गया था.'सिर्फ़ गंगा ही नहीं'कैंपस हैंगआउट में छात्रों ने बनारस की बुनियादी समस्याओं की ओर भी ध्यान दिलाया.कृति वर्मा ने  बुनियादी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा, "अब भी हर रोज़ छह से आठ घंटे बिजली कटती है, पानी का भरोसा नहीं. कूड़े को सही तरीक़े से ठिकाने नहीं लगाया जाता."अरुण कुमार देशमुख ने बनारस के विकास के लिए छह सूत्रीय एजेंडा भी सामने रखा. उन्होंने कहा, "शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, स्वच्छता, स्वरोज़गार और समरसता के ज़रिए बनारस का विकास हो सकेगा."नीतम सिंह ने रोज़गार का मुद्दा उठाया और पूछा कि आख़िर बनारस के युवाओं को शहर छोड़कर दिल्ली या मुंबई का रुख़ क्यों करना पड़ रहा है?मुद्दा गंगा की सफ़ाई, बुनकरों की स्थिति, कूड़े के निस्तारण और अपने कर्तव्यों के प्रति नागरिकों की जागरूकता का भी उठा.

मगर जो बात इस पूरी बहस से सहज रूप में समझ में आई वो ये थी कि इतनी बार विकास के वायदों के बाद भी विकास नहीं पाने वाले शहरवासी अब किसी भी प्रत्याशी पर आँखें मूँदकर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं.

Posted By: Subhesh Sharma