इस्लामी चरमपंथी संगठन आईएस ने इराक़ और सीरिया में अपने कब्ज़े वाले इलाक़े में 'ख़िलाफ़त' यानी इस्लामी राज्य का ऐलान किया.


आईएस प्रमुख अबू बकर अल-बग़दादी ने ख़ुद को 'ख़लीफ़ा' यानी दुनिया के मुसलमानों का नेता बताया.ख़िलाफ़त क्या है? ये कैसे शुरू हुआ. ख़लीफ़ा कौन हैं? आईएस की घोषणा के पीछे उनकी कौन सी महत्वाकांक्षाएं छिपी हैं?विश्लेषण कर रहे हैं बीबीसी के एडवर्ड स्टुअर्टजून में इस्लामिक स्टेट ने जब 'ख़िलाफ़त' की घोषणा की तो ऐसा लगा कि उसकी महत्वाकांक्षाओं और ऐतिहासिक फंतासी को स्वीकृति मिल गई हो.अल-बग़दादी का कहना था कि 'ख़िलाफ़त' के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करना दुनिया भर के मुसलमानों की धार्मिक जिम्मेदारी है.मध्य-पूर्व क्षेत्र में इसके ख़िलाफ़ तीखी प्रतिक्रिया हुई और आईएस को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा.पहले चार ख़लीफ़ाओं, जिन्हें 'राशिदून' कहते हैं, ने क़रीब तीन दशकों तक शासन किया.'द इनएविटेबल खलीफा' के लेखक रज़ा पनख़ुर्स्त के मुताबिक़ इन चार खल़ीफ़ाओं का चुनाव आम सहमति से हुई थी.


पनख़र्स्त कहते हैं कि पहले चार ख़लीफ़ाओं को आदर्श ख़लीफ़ा माना जाता है. वो कहते हैं कि सच्चे ख़लीफ़ा ख़ुद भी क़ानून से ऊपर नहीं होते.तख्तापलट

शिया मुसलमान इतिहास की इस व्याख्या को स्वीकार नहीं करते. वो मानते हैं कि पैगंबर के चचेरे भाई अली को ख़लीफ़ा न बनने देने के लिए पहले दो ख़लीफ़ाओं ने आपस में मिलकर एक सफल तख्तापलट किया था.

पहली ख़िलाफ़त को लेकर हुआ यह विवाद इस्लाम के इतिहास में सबसे लंबे समय से चल रहा विवाद है.लेकिन आज के सुन्नी मुसलमानों, जिनमें से अधिकांश तानाशाही शासन में रहते हैं, वो आम सहमति से बने ख़लीफ़ा शासन को लेकर गहरा आकर्षण हो सकता है.ख़िलाफ़त को लेकर आकर्षण का दूसरा बड़ा कारण ये है कि ये मुसलमानों को मुस्लिम शासकों की महानता की याद दिलाता है.पहले चार 'आदर्श ख़लीफ़ाओं' के दौर के बाद उम्मयद और अब्बासी शासन के शाही ख़लीफ़ाओं का दौर आया.इस्लाम का स्वर्ण युगइतिहासकार प्रोफेसर ह्यूग केनेडी का कहना है, "पैगंबर की मृत्यु के 70 साल बाद स्पेन और मोरक्को से लेकर मध्य एशिया और फिर मौजूदा पाकिस्तान के दक्षिणी छोर तक फैला मुसलमानों का विशाल साम्राज्य एक मुसलमान नेता के अधीन रहा."हालांकि, ख़िलाफ़त संस्था बच गई. अब्बासी परिवार के सदस्यों को ममलूकों ने काहिरा में नाममात्र के ख़लीफ़ा के रूप में मान्यता दी.ममलूक वे हैं जिन्हें आज सुन्नी इस्लामी सत्ता का प्रतीक के रूप में देखा जाता है. इसके जरिए एक ऐसे एकल नेता का आदर्श स्थापित किया गया जो मुसलमानों को एकजुट रख सके.इसके बाद एक नए साम्राज्य का उदय हुआ.
ओटोमन सुल्तान ने अगले 400 सालों तक इस्लामिक दुनिया पर शासन किया.ख़िलाफ़त आंदोलन का अंत20वीं सदी के मध्य में मिस्र के जमाल अब्दुल नासिर जैसे नेताओं ने इसका जवाब देने की कोशिश की. पैन-अरबइज्म के नाम से जानी जाने वाली विचारधारा ने धर्मनिरपेक्ष ख़िलाफ़त की धारणा को पेश किया.संयुक्त अरब गणराज्य की स्थापनाइसी सिलसिले में 1950 के दशक के दौरान नासिर ने मिस्र और सीरिया को मिलाकर संयुक्त अरब गणराज्य की स्थापना की.लेकिन इसराइल के गठन के बाद मध्य-पूर्व में सबकुछ बदल गया. पनख़ुर्स्त का तर्क है कि पैन-अरबइज्म इसराइल सैन्य शक्ति के आगे बिखर कर रह गया.पनख़ुर्स्त, हिज़्ब-उत-तहरीर नामक एक संगठन से जुड़े हैं जिसकी स्थापना साल 1950 में ख़िलाफ़त आंदोलन को फिर से शुरू करने के मक़सद के की गई थी.लेकिन 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में मध्य-पूर्व पर शासन करने वाली सत्ता को हिज़्ब-उत-तहरीर नापसंद थी. इसका परिणाम ये हुआ कि पनख़ुर्स्त को मिस्र की जेल में चार साल गुज़ारने पड़े.मुस्लिम ब्रदरहुड
इतिहासकार ह्यूग केनेडी बताते हैं कि उनकी वर्दी और झंडे का रंग जानबूझकर काला रखा गया है ताकि इससे इस्लाम के स्वर्ण युग की याद आए. 8वीं सदी में अब्बासी भी अपने दरबार में काले रंग की ड्रेस पहनते थे.उनका मूल नाम, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवान उस दौर की याद दिलाता है जब दो देशों के बीच कोई सरहद नहीं थी, क्योंकि दोंनो के इलाक़े इस्लामी ख़िलाफ़त का हिस्सा थे.आईएस की सफलता से प्रतीत होता है कि ख़िलाफ़त कितना गंभीर और अत्यंत महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षा बन चुकी है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh