भारतीयों को सचिन से इतना प्यार क्यों है?
उस दिन पूरे समय सचिन और उनकी विरासत भारतीय टेलीविज़न पर बहस और चर्चा का केंद्र बने थे.इस पर एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता ने ग़ुस्से से भरा शिकायती लेख लिखा. उन्होंने लिखा कि हर चैनल ने एक खिलाड़ी के संन्यास के परिणामों पर बेहद लंबी-चौड़ी बहस की लेकिन मीडिया ने बिहार में क़रीब 60 दलितों (जिन्हें पहले अछूत कहा जाता था) की हत्या के अभियुक्त सवर्ण सेना के लोगों की पटना हाईकोर्ट से रिहाई जैसी सामयिक घटना को हल्के-फुल्के ढंग से लिया.यह आरोप कि क्रिकेट प्रेम- और वह भी किसी एक क्रिकेटर के लिए– सामाजिक भेदभाव के प्रति उदासीनता के लिए ज़िम्मेदार है, यूं ही अनदेखा नहीं छोड़ा जा सकता.
लेख पर एक कमेंट में स्वीकारा गया था कि ‘(दलितों का) नरसंहार बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन फिर भी आपको यह मानना पड़ेगा कि तेंदुलकर का समाज के लिए योगदान वास्तव में काफ़ी बड़ा है, किसी भी कम्युनिस्ट क्रांति या किसी ख़ून की प्यासी सेना से ज़्यादा.’
ग्रामीण बिहार में पले-बढ़े इस पत्र लेखक ने अपने वो दिन याद करते हुए कहा, ‘हम ट्रैक्टर की बैटरी से चलने वाले ब्लैक एंड व्हाइट टीवी (क्योंकि उन दिनों बिजली नहीं आती थी) पर तेंदुलकर की बल्लेबाज़ी देखते थे. और मुझे याद है पूरा गांव इकलौते टेलीविज़न स्क्रीन पर दिखाई दे रहे इस नए लड़के की हौसलाअफ़ज़ाई करता था...चाहे फिर वो भूमिहार हों, ब्राह्मण या फिर दलित.’पृष्ठभूमिक्रिकेट से नफ़रत करने वाले कम्युनिस्टों के लिए इस कमेंटेटर ने फ़िकरा कसा था, ‘अगर हमें कुछ चाहिए तो हमें और तेंदुलकर चाहिए. और ज़्यादा तेंदुलकर ताकि उत्तर और दक्षिण, हिंदू और मुसलमान, अगड़ों (ऊंची जातियों) और पिछड़ों (दलितों) के बीच बनी सरहदें पाटी जा सकें.’सचिन तेंदुलकर ने 1989 में अपना अंतरराष्ट्रीय करियर शुरू किया था. अपने शुरुआती सालों में वह भारत में बढ़ते सामाजिक संघर्ष की पृष्ठभूमि में टेस्ट क्रिकेट खेल रहे थे.पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की वकालत करने वाली मंडल आयोग की रिपोर्ट ने विभिन्न जातियों के बीच संघर्ष का सूत्रपात कर दिया था.भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने असमानता और बेरोज़गारी के डर को और बढ़ा दिया था. कश्मीर में चरमपंथ ज़ोरों पर था और पाकिस्तान के साथ सीमा पर तनाव बढ़ रहा था.
भारतीयों को वैसे भी रिकॉर्ड्स पसंद हैं. हम दूसरे खेलों में बेहद पिछड़े हुए हैं और ओलंपिक में दयनीय प्रदर्शन करते हैं. इस तथ्य ने हमें तेंदुलकर से चिपके रहने को मज़बूर कर दिया.सबसे उम्दा खिलाड़ीविशुद्ध क्रिकेट भाषा में कहें तो इसमें कोई संदेह नहीं कि तेंदुलकर अपनी पीढ़ी के सबसे उम्दा खिलाड़ी थे.ऑस्ट्रेलियाई लेग स्पिनर शेन वार्न और दक्षिण अफ़्रीकी ऑलराउंडर जैक्स कैलिस, दोनों नि:संदेह उनकी तरह महान हैं.इसी तरह कोई इस बात को पूरे दावे के साथ नहीं कह सकता कि तेंदुलकर अब तक के भारत के सबसे महानतम क्रिकेटर हैं. ऑलराउंडर वीनू मांकड़ और कपिल देव भी इस ख़िताब के उतने ही दावेदार हैं.हां, इतना सुनिश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि न तो कोई क्रिकेटर और न ही कोई खिलाड़ी इतने व्यापक पैमाने पर अपने देशवासियों में पूज्यनीय नहीं रहा, जितना तेंदुलकर रहे हैं.कवि सीपी सुरेंद्रन ने एक बार कहा था कि दूसरे बल्लेबाज़ अकेले मैदान पर खेलने के लिए उतरते हैं, जबकि तेंदुलकर जब क्रीज़ पर आते हैं तो, ‘पूरा देश, पूरे जोश के साथ उनके साथ युद्धक्षेत्र में उतरता रहा है.’यानी कहना होगा ‘एक अरब जूझते हुए भारतीयों’’ के साथ ‘सिर्फ़ एक हीरो’ हुआ करता था.