- तब पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स के लिए एलयू में नहीं था हॉस्टल

- पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स के रहने के लिए छोड़ दिया था अपना बंगला

LUCKNOW :

लखनऊ यूनिवर्सिटी शताब्दी वर्ष को बड़े धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रहा हैं। यूनिवर्सिटी के सौ वर्ष का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। खासतौर पर यहां के शिक्षकों के द्वारा की गई शिक्षा और उनके त्याग का एक अलग ही स्थान है। यूनिवर्सिटी ने देश के राष्ट्रपति, गवर्नर, मुख्यमंत्री व कई मंत्री तक दिए हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे गुरु जी भी दिए है, जिन्होंने यूनिवर्सिटी के साथ ही समाज के पिछड़े लोगों को आगे लाने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। इन्हीं में एक थे आचार्य नरेंद्र देव, जिन्होंने समाज के पिछड़ों के उत्थान के लिए यूनिवर्सिटी में एक मिशाल पेश की थी।

खाली किया अपना बंग्ला

आचार्य नरेंद्र देव साल 1947 से 1951 तक लखनऊ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे थे। एलयू के पब्लिक एडमिन विभाग के प्रोफेसर व अवध यूनिवर्सिटी फैजाबाद के पूर्व वीसी प्रो। मनोज दीक्षित ने बताया कि आचार्य नरेंद्र देव सन 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद पुणे में झंडा रोहण किया था। वहां से चलकर अगले दिन लखनऊ यूनिवर्सिटी आकर उन्होंने वीसी का पद संभाला था। कार्यकाल के दौरान उन्हें रहने के लिए गोमती किनारे स्थित कबूतर कोठी तत्कालिन वीसी आवास आवंटित हुई थी। वे महान समाजसेवी व समाज सुधारक थे। जब उन्हें पता चला कि पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स के रहने के लिए एलयू में हॉस्टल नहीं है तो उन्होंने अपना बंगला खाली कर इन स्टूडेंट्स के लिए हॉस्टल बनवाया था।

खुद गए थे किराए के मकान में

प्रो। दीक्षित बताते हैं कि पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स के लिए रहने के लिए अपना बंगला देने के बाद आचार्य नरेंद्र देव न्यू हैदराबाद एरिया में एक किराए के मकान में रहने चले गए थे। उनको एलयू में बने दूसरे कई बंगला आवंटन करने की काफी कोशिश की गई पर उन्होंने लेने से मना कर दिया। उनका कहना था गरीब छात्रों के रहने की व्यवस्था पहले होनी चाहिए। वीसी रहने के दौरान उन्होंने वेतन भी नहीं लिया था। वह हर रोज नियमित रूप से क्लास लेने जाते थे।