लखनऊ (ब्यूरो)। परीक्षा में अच्छे अंक हासिल करने की लालसा, दूसरे स्टूडेंट्स से एकेडमिक कंप्टीशन, पेरेंट्स द्वारा बाकी बच्चों से अपने बच्चों की तुलना करना आदि कई कारण बच्चों के तनाव को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इन्हीं कारणों के चलते स्टूडेंट्स सुसाइड जैसा कदम उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं। इस तरह की स्थिति से स्टूडेंट्स को उबारने के लिए स्कूल प्रबंधन के साथ-साथ पेरेंट्स को भी सजग होने की आवश्यकता है

इन वजहों से सुसाइड
एनसीआरबी के मुताबिक, देश में लगभग हर घंटे एक छात्र सुसाइड कर रहा है। राजधानी में इस तरह के जो मामले हाल के दिनों में सामने आए हैं, उनमें फियर ऑफ फेल्योर, एक्सपेक्टेशन, एक दूसरे से आगे निकलने की होड़, मेंटल प्रेशर आदि वजहें मुख्य रूप से सामने आई हैं। मनोचिकित्सक कहते हैं कि अगर पेरेंट्स और स्कूल प्रबंधन कुछ बातों का ध्यान दें तो टीनएजर्स को सुसाइड करने से रोका जा सकता है।

इस उम्र में सर्वाधिक दिक्कत
मनोचिकित्सकों के अनुसार जिस तरह तरक्की खुशी देती है, पर तरक्की और बेहतरीन प्रदर्शन की होड़ के चलते स्टूडेंट्स सोशल फोबिया का शिकार हो जाते हैं। इसका सर्वाधिक शिकार 15 से 25 साल के लोग हो रहे हैं।

इन प्वाइंट्स को समझें
फियर ऑफ फेल्योर
एक्सपर्ट के अनुसार, कई बार स्टूडेंट्स के मन में फेल्योर का डर बना रहता है। उन्हें लगता है कि कहीं उनका साथी पढ़ाई के मामले में उनसे आगे न निकल जाए। वहीं, अगर उनका साथी पढ़ाई में उनसे आगे निकल जाता है तो वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं।

एक्सपेक्टेशन
कई बार पेरेंट्स अपने बच्चों की क्षमता से अधिक उम्मीदें उनसे करने लगते हैं लेकिन बच्चे इस पर खरा नहीं उतर पाते हैं। असफल होने पर बच्चे मानसिक रूप से टूट जाते हैं और सुसाइड जैसा खतरनाक कदम तक उठा लेते हैं।

मेंटल प्रेशर
कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों पर पढ़ाई का अत्यधिक प्रेशर डालते हैं। इस मेंटल प्रेशर को बच्चा स्वीकार नहीं कर पाता है और डिप्रेशन में चला जाता है। डिप्रेशन में जाने के चलते बच्चे खुद को नुकसान भी पहुंचा लेते हैं।

तो हो जाएं सावधान
- बच्चा अकेले अधिक तो नहीं रह रहा है
- बच्चे ने बातचीत करना तो कम नहीं कर दिया है
- पार्टी आदि में जाने से भी बच्चा मना करने लगे
- वह अपना अधिक समय अंधेरे में तो नहीं बिता रहा है
- बच्चा खोया-खोया सा रहने लगा हो

इसका रखें ध्यान
- इंसान के दिमाग का वह हिस्सा जो डर और भावनाओं से जुड़ा होता है काफी सेंसिटिव होता है।
- कुछ स्टूडेंट्स हर बात को निगेटिव तरीके से लेने लगते हैं। ऐसे बच्चे हमेशा सशंकित होते हैं।
- किसी परिजन के साथ हुई घटना को कई बार बच्चे अपने ऊपर ले लेते हैं। इससे उनके मन में डर बैठ जाता है।

ऐसे करें बचाव
- बच्चे की क्षमता के अनुसार ही उस पर पढ़ाई का प्रेशर डालें
- बच्चों में एक्सरसाइज और मार्निंग वॉक, योग आदि की आदत डालें
- आउटडोर गेम्स के प्रति बच्चों को जागरूक करें
- स्कूल में बच्चे का बिहेवियर कैसा है, इसकी भी जानकारी रखें
- दूसरों के सामने बच्चों को डांटे-मारें न
- बच्चों पर एग्जाम को लेकर प्रेशर न बनाएं

अब पेरेंट्स और बच्चों के बीच बातचीत न होने के चलते दूरियां बढ़ रही हैं। एक ही घर में रहने के बाद भी पेरेंट्स और बच्चों में बात नहीं होती है। सभी मोबाइल में बिजी रहते हैं। ऐसे में बच्चों में होने वाले डिप्रेशन के संकेत पेरेंट्स समझ ही नहीं पाते हैं। समय रहते इसका पता न चलने से कुछ मामलों में बच्चा सुसाइड तक के बारे में सोचने लगता है। पेरेंट्स को बच्चों में दिखने वाले इन संकेतों पर नजर रखनी चाहिए। ऐसे संकेत दिखते ही उसे डॉक्टर को दिखाएं और इसकी सूचना उसके टीचर्स को भी दें। ऐसा करके पेरेंट्स बच्चों को खतरनाक कदम उठाने से रोक सकते हैं।
डॉ। देवाशीष शुक्ल, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, कैंसर संस्थान

राजधानी में हाल के दिनों में आए ऐसे मामले
केस-1
इसी माह अक्टूबर में जानकीपुरम क्षेत्र के आकांक्षा परिसर पॉकेट-2 के पार्क में झूले पर दुप्पटे के सहारे अलीगंज सीएमएस के 9वीं के छात्र आरव सिंह ने सुसाइड कर लिया था। घटना वाले दिन उसका अंग्रेजी का पेपर था। माना जा रहा है कि वह इंग्लिश का पेपर होने की वजह से वह दबाव में था, जिस वजह से उसने सुसाइड कर लिया।

केस-2
सितंबर 2023 को गोमती नगर रिवर फ्रंट में 12वीं की छात्रा दीपांक्षा ने सुसाइड कर लिया। उसके पास एक सुसाइड नोट बरामद पुलिस को मिला। जिसमें लिखा था कि 'अरुण तुम मेरी जिंदगी में न होते तो मैं मरती नहीं, मैं मर रही हूं इसके जिम्मेदार तुम नहीं होÓ। दीपांक्षा भी मानसिक तनाव में थी।

केस-3
सितंबर 2023 को अलीगंज सीएमएस में पढ़ने वाला 9वीं का छात्र आसिफ सिद्दीकी क्लास में बेहोश हो गया। उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था। उसकी हार्ट अटैक से मौत हुई थी।

केस-4
सितंबर 2023 को ठाकुरगंज के हुसैनाबाद शिवपुरी में डीएलएड के छात्र शाहरुख ने घर में सुसाइड कर लिया। परिजनों का आरोप था कि कॉलेज के टीचर वाइवा और प्रोजेक्ट फाइल बनाने का दबाव बना रहे थे। इस दबाव को वह झेल न सका।

केस-5
नवंबर 2022 को गोमती नगर विस्तार में सीएमएस का 9वीं का छात्र रेलवे लाइन पर लहूलुहान मिला। इसके पास एक माफीनामा मिला था, जिसमें लिखा था कि मैम, मैं।।। कक्षा नौ का छात्र हूं, मैं माफी मांगता हूं, मैंने जो किया वह बहुत गलत था, मैम, मैं वादा करता हूं कि अब ऐसा नहीं होगा।

स्कूल वाले क्या बोले
स्कूलों को बच्चों के लिए काउंसिलिंग सत्र आयोजित कराने चाहिए। कई स्कूलों में ऐसा होता भी है। स्कूल मैनेजमेंट टीचर्स को भी इससे रिलेटेड गाइडेंस देते रहते हैं, जैसे किसी भी बच्चे को उनकी क्षमताओं से अधिक प्रेशर न डालें। साथ ही बच्चों और टीचर्स के बीच भी खुलकर संवाद होना जरूरी है।
अनिल अग्रवाल प्रबंध निदेशक सेंट जोसेफ स्कूल्स एंड कॉलेज

बच्चे पेरेंट्स के प्रेशर से जितना डरते हैं, उतना टीचर्स से नहीं डरते हैं। स्कूल्स असल में एक ब्रिज की तरह काम कर सकते हैं। जो स्टूडेंट्स के स्ट्रेस को कम करते हुए उनके और पेरेंट्स के बीच के घट रहे संवाद को और मजबूत कर सकते हैं।
शर्मिला सिंह, प्रिंसिपल, पायनियर मॉन्टेसरी स्कूल एल्डिको शाखा