लखनऊ (ब्यूरो)। देश में थैलेसीमिया के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हर साल भारत में करीब 12 हजार से अधिक बच्चे थैलेसीमिया से पीडि़त पैदा हो रहे हैं, जोचिंता की बात है। वहीं, प्रदेश में करीब एक हजार से अधिक बच्चे इस बीमारी से पीडि़त हैं। पर इसमें कई तो इलाज करवाने तक नहीं आते हैं। इसके बढऩे का बड़ा कारण एक गोत्र यानि रिश्तेदारी में ही शादी होना है। पहले लोग कुंडली मिलान के दौरान गोत्र पर विशेष ध्यान देते थे। पर अब इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे यह समस्या बढ़ती जा रही है। यह जानकारी केजीएमयू के सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च की डॉ। नीतू निगम ने दी।

थारू जाती में समस्या सबसे ज्यादा

डॉ। नीतू निगम ने बताया कि थारू जनजाति में थैलेसीमिया और सिकल सेल की समस्या सबसे ज्यादा है। चूंकि वहां कोई टेस्टिंग लैब भी नहीं है और अवेयेरनेस प्रोग्राम नहीं होता है। इसी समस्या को देखते हुए लखीमपुर खीरी में 12वीं तक के स्कूल के 359 बच्चों के सैंपल कलेक्ट किए गये और उसकी रिपार्ट बनाई। इसमें 282 की रिपोर्ट नार्मल आई थी, जबकि 22 सैंपल में हेट्रोजाइगस थैलेसीमिया यानि बीटा थैलेसीमिया के साथ कोई और भी म्यूटेशन पाया गया। वहीं, 32 में सिकल सेल हेट्रोसाइगस, 1 में एल्फा थैलेसीमिया और 1 में हेट्रोजाइगस डेल्टा बीटा सेल 1 मिला है। सभी कर रिपोर्ट सौंप दी गई है। जिसके बाद उनकी काउंसलिंग व ट्रीटमेंट का काम शुरू किया गया है। पैरेंट्स को प्रेग्नेंसी से पहले और बाद में प्रिनेटल डायग्नोसिस, थैलेसीमिया कैरीयर स्क्रीनिंग, मैरिजेबल एज स्क्रीनिंग, प्री ऑपरेटिव स्क्रीनिंग और जेनेटिक काउंसलिंग भी करना चाहिए।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट से राहत

पीजीआई के हिमटोलॉजी विभाग के डॉ। संजीव का कहना है कि थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट से राह आसान हुई है। ट्रांसप्लांट के बाद पीडि़त बच्चे सामान्य बच्चों की तरह जीवन यापन कर सकते हैं। हालांकि, बोन मैरो ट्रांसप्लांट पर करीब 10 लाख रुपये तक का खर्च आता है। लेकिन थैलेसीमिया बाल सेवा योजना से यह ट्रांसप्लांट फ्री संभव है। पीजीआई ने इस योजना के तहत आठ बच्चों का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया है। यह बच्चे सामान्य जीवन जी रहे हैं।

ट्रांसप्लांट से 90 पर्सेंट इलाज संभव

थैलेसीमिया अनुवांशिक बीमारी है। यह बच्चों में माता-पिता से होती है। इसकी पहचान बच्चे में तीन महीने बाद ही हो पाती है। इस बीमारी में बच्चों के शरीर में खून की कमी होने लगती है। सही वक्त पर उपचार न मिलने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट से इस बीमारी का करीब 90 पर्सेंट इलाज संभव है। छह साल की उम्र तक बच्चे का प्रत्यारोपण हो जाना चाहिए। ऐसे में पैरेंट्स को प्रेग्नेंसी के दौरान बेहद ध्यान रखना चाहिए और सभी जरूरी जांचे समय पर करवानी चाहिए।

ये होते हैं लक्षण

- चेहरा सूखना

- लगातार बीमार रहना

- वजन न बढऩा

- बच्चों का विकास न होना

- हाथ-पैर ठंडे होना

- पैरों में ऐंठन