-हर विभाग के दीवारों पर दिखेगी ऐपण कला, सरकार का जीओ

-ऐपण से जुड़े महिलाएं व संस्थाएं होंगे ब सूचीबद्ध

देहरादून, कालांतर से चली आ रही उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की ऐपण कला अब हर विभागों के दफ्तरों में नजर आएगी। सरकार ने लोक कला संस्कृति में सूबे की पहचान रखने वाली इस संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बकायदा शासनादेश भी जारी किया है। बताया गया कि इसके पीछे इस लोक कला को न केवल बचाने की कोशिश की जाएगी, बल्कि इससे जुड़े रहने वाली महिलाओं की भी आर्थिक मजबूती देने के प्रयास किए जा रहे हैं।

कुमाऊं की कला संस्कृति की पहचान

कुमाऊं क्षेत्र में ऐपण लोक कला की अपनी पहचान है। लाल मिट्टी(गेरु) व चावल भिगाकर तैयार सफेद रंग से तैयार होने वाले ऐपणा(भितित)चित्र, जिसको लिख थाप भी कहते हैं। ऐपण का प्रयोग शादी समारोहों से लेकर शुभ कार्यो में किया जाता है। इसमें महालक्ष्मी पूजन, जनेऊ पीठ, शिव पीठ यंत्र सहित कई मौकों पर ऐपण की कला-कृतियां तैयार की जाती हैं। इस लोक कला का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है, लेकिन इस संस्कृति से जुड़ी महिलाओं की आर्थिक स्थिति व बढ़ावा न मिलने की वजह से यह संस्कृति अब विलुप्त होते जा रहा है। हाल में सीएम हरीश रावत ने इन लोक कला पर इनिसिएटिव लेते हुए संस्कृति विभाग को निर्देश दिए कि विलुप्त होती ऐपण को आगे बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों के साथ प्रचार-प्रसार किए जाएं। इसी क्रम में अब संस्कृति विभाग ऐपण से जुड़े संस्थाओं व महिलाआें सूचीबद्ध करने की तैयारी कर रही है।

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कपड़े में भी तैयार हो रहे ऐपण

बदलते परिवेश को देखते हुए ऐपण अब सफेद व लाल रंग से भी कपड़े पर तैयार कर रही हैं। जिसको अपने घर या ऑफिस के दीवार पर भी स्थापित किया जा सकता है। बताया गया है कि ऐपण राष्ट्रीय पर्वों व कार्यक्रम स्थलों पर प्रदर्शित किए जाएंगे। इसके लिए सभी विभागों में सरकार ने अनिवार्य भी कर दिया है।

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कई राज्यों तक जाते हैं ऐपण

संस्कृति विभाग की मानें तो इस वक्त सूबे में करीब ख्0 संस्थाएं ऐसी हैं, जो एपण के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर काम कर रही हैं। जिनके तैयार उत्पाद अब उत्तराखंड से लेकर दूसरे राज्यों गुजरात, दिल्ली, लखनऊ व दूसरे देशों तक ऑर्डर पर जाते हैं। बताया गया है कि इन प्रदेश व देशों में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडी ऑर्डर पर मंगाया करते हैं।

::वर्जन::

जो संस्थाएं ऐपण के क्षेत्र में काम कर रही हैं, उनका विभाग की तरफ से पंजीकरण किया जा रहा है। इसमें ऐसी लोक कला संस्कृति के लिए आगे आने वाले एनजीओ को भी शामिल किया जा रहा है।

बीना भट्ट, निदेशक, संस्कृति विभाग।