-दो दशक पहले जिले में पांच हजार हेक्टेयर भूमि पर होती थी कपास की खेती

-जिले में अब गुजरात, हरियाणा से होती है कपास की आवक

ROORKEE : जिले के किसानों ने कपास की खेती से मुंह मोड़ लिया है। नतीजतन अब कपास के लिये भी लिये भी जिले के लोगों को गुजरात एवं हरियाणा का मुंह ताकना पड़ रहा है। इन्हीं राज्यों से कपास की आवक हो रही है जबकि दो दशक पहले तक जिले में पांच हजार हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती होती थी।

दलहनी फसल भी नहीं बो रहे

जनपद में फिलहाल 9म् हजार हेक्टेयर भूमि पर खेती की जा रही है। फसलों के लिहाज से जिले की भूमि अधिकांश फसलों के लिये उपयुक्त है। यहां पर अलग-अलग विकास खंडों की भूमि की अपनी विशेषता है, कहीं की भूमि धान के लिये सर्वोत्तम है तो कहीं पर मूंगफली और मक्का के लिए लेकिन समय के साथ किसानों ने कई तरह की फसलों से मुंह मोड़ लिया है। दहलनी फसलों में कई तरह की दलहनी फसलों को किसानों ने कई दालों को बोना ही छोड़ दिया है। इसी तरह से कपास की बुआई भी किसानों ने छोड़ दी है जबकि जिले की भूमि कपास की खेती के लिए उपयुक्त है।

नहीं मिलते खेतीहर मजदूर

किसान ऋषिपाल सिंह, सुरेन्द्र सैनी ने बताया कि दो दशक पहले तक जिले में कपास का उत्पादन बडे़ पैमाने पर होता था लेकिन उत्तराखंड गठन के बाद हुए औद्योगिकरण के चलते खेतीहर मजदूर ही नहीं मिल पाते। जबकि कपास आदि की खेती के लिए सबसे अधिक श्रमिक चाहिये। श्रमिकों के अभाव में किसानों ने कपास की खेती को करना ही छोड़ दिया। मुख्य कृषि अधिकारी जेपी तिवारी ने बताया कि बहरादराबाद, रुड़की, भगवानपुर एवं नारसन विकास खंड में काफी भूमि कपास के लिए उपयुक्त है लेकिन किसानों को उपज का सही दाम ना मिलना, श्रमिकों का ना मिलना एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कपड़ा मिलों के बंद होने की वजह से कपास का उत्पादन बंद हो गया है।

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अब अहमदाबाद से आती है कपास

जिले में अब अधिकांश कपास गुजराज के अहमददाताद से आती है। इसके अलावा हरियाणा से भी कुछ मात्र में कपास आ रही है। श्री गांधी आश्रम रुड़की के प्रबंधक श्री रमेश कुमार मिश्र की माने तो अब हरियाणा से भी कम मात्रा में ही कपास आ रही है जबकि पूर्व में हरियाणा से काफी कपास आती है, अब तो गुजरात पर ही निर्भरता रह गई है।

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जुलाई में होती है बुआई

मुख्य कृषि अधिकारी जेपी तिवारी ने बताया कि कपास की बुआई जुलाई से शुरू हो जाती है और छह माह बाद कपास का उत्पादन शुरू हो जाता है। कपास की फसल डेढ़ से दो साल तक उत्पादन देती है। कपास से रूई के अलावा मवेशियों के लिये बिनोला और ईंधन की प्राप्ति होती है।