दिल्‍ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से संसद भवन प्रेजिडेंशियल एस्‍टेट और अन्‍य सरकारी आवासों के लिए अधिग्रहित की गई जमीन की मुआवजा अदायगी के संबंध में जवाब मांगा है. गौरतलब है कि इन भवनों की जमीन के पूर्व मालिकों ने 100 साल पहले अधिग्रहण को कोर्ट में चुनौती दी है.


100 साल हो गए लेकिन नही मिला मुआवजा


दिल्ली हाईकोर्ट में किसानों के एक समूह ने प्रेसिडेंशियल एस्टेट, संसद भवन और अन्य सरकारी दफ्तरों की जमीन के अधिग्रहण को चुनौती दी है. किसानों का कहना है कि 1911-12 में नेशनल कैपिटल कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट होने पर मालचा गांव के किसानों से जमीन मांगी गई थी. इसके एवज में 2217, 10 आना और 11 पैसे मुआवजा देना तय किया गया था. लेकिन इस करार के 100 साल बीत जाने पर भी मुआवजे की राशि को अदा नही किया है. किसानों का तर्क है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के अनुसार अगर भूमि अधिग्रहण का मामला पांच साल या उससे पुराना है और मुआवजा या कब्जा नही लिया गया है तो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को खत्म माना जाएगा. ऐसे में किसानों के वकील सूरत सिंह का कहना है कि सरदार पटेल मार्ग के निकट स्थित प्रेजिडेंशियल एस्टेअ, संसद भवन और सरकारी ऑफिसेस की जमीन उनके पूर्वजों की है. कोर्ट ने मांगा केंद्र से जवाब

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस बदर दुरेज अहमद और जस्टिस आई एस मेहता ने मामले की सुनवाई करते हुए उप-राज्यपाल, भूमि एवं भवन विभाग और शहरी विकास मंत्रालय को नोटिस दिया है. इस नोटिस में कोर्ट ने केंद्र सरकार से 23 मार्च तक इस संबंध में जवाब देने को कहा है. गौरतलब है कि इस अधिग्रहण में 150 ग्रामीणों की 1700 एकड़ जमीन को 1911-12 की आदेश संख्या 30 के तहत अधिग्रहित किया गया था.

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Posted By: Prabha Punj Mishra