उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आलोचक ये कहकर बराबर उन्हें घेरते रहे हैं कि उनके दो साल के कार्यकाल में मुज़फ़्फ़रनगर समेत 100 से अधिक दंगे हो चुके हैं. लेकिन अखिलेश इसके लिए अपनी पार्टी को नहीं बल्कि पूरी तरह भाजपा को ज़िम्मेदार बताते हैं.


दरअसल दंगे और उसके आधार पर होने वाला ध्रुवीकरण पश्चिमी उत्तर प्रदेश और रुहेलखण्ड में चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाया गया.भले ही इस ध्रुवीकरण के लिए सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और भाजपा दोनों ही को ज़िम्मेदार माना जा रहा हो लेकिन अखिलेश यादव ने बीबीसी के साथ ख़ास इंटरव्यू में इसके लिए केवल भाजपा को ही दोषी ठहराया.उन्होंने कहा, "भारतीय जनता पार्टी का प्रयास था कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो जाए और एक डिवीज़न दिखाई दें. लेकिन समाजवादी पार्टी ने उस कोशिश को रोका है."अखिलेश का कहना है कि 'धार्मिक सद्भावना और धर्म निरपेक्षता के पक्ष में मतदान हुआ है जो अच्छी बात है.'


यह पूछने पर कि ध्रुवीकरण में समाजवादी पार्टी का क्या योगदान है, अखिलेश ने भाजपा को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा, "जो कम्युनल रास्ता है, जो साम्प्रदायिकता का रास्ता है वो उनको आसान दिखता है. वहीं सेक्युलर होना बहुत मुश्किल है. जो उत्तर प्रदेश में माहौल बना है, केवल सीट जीतने के लिए, उसके लिए पूरी ज़िम्मेदार भारतीय जनता पार्टी है."मुसलमानों की रक्षक

ध्रुवीकरण का जितना फ़ायदा भाजपा को होगा उससे थोड़ा ही कम समाजवादी पार्टी को होगा. अगर भाजपा हिन्दुओं और धर्म की रक्षा के नाम पर वोटरों पर ख़ामोशी से डोरे डाल रही है तो समाजवादी पार्टी मुसलमानों के रक्षक के रूप में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने के प्रयास में है.लेकिन अखिलेश ज़ोर देकर कहते हैं कि उनकी सरकार धर्मनिरपेक्ष सरकार है. प्रदेश में हुए साम्प्रदायिक हिंसा और दंगों के लिए भी वे भाजपा को ही दोषी मानते हैं.चुनावों के बाद तीसरे विकल्प की बात करते हुए  अखिलेश कहते हैं कि इस चुनाव में तीसरे मोर्चे को सबसे ज़्यादा सीट मिलेंगीं और देश चाहता है कि एक सेक्युलर और समाजवादी सोच कि सरकार बने.अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनते ही यह चर्चा शुरू हो गई थी कि उनके चाचा शिवपाल, जो अखिलेश के मंत्रिमंडल में एक वरिष्ठ मंत्री हैं अपने भाई मुलायम के फैसले से नाखुश थे. और जब मुलायम ने सरेआम सरकार कि आलोचना करनी शुरू की तो यह कहा जाने लगा कि उत्तर प्रदेश में चार मुख्यमंत्री हैं, मुलायम, आज़म, शिवपाल और अखिलेश.यहां काम ना हो पाने का कारण बताया गया आज़म और शिवपाल द्वारा अखिलेश की बात को अनसुनी करना.यूँ तो शिवपाल को मुलायम की सरकार में भी महत्वपूर्ण विभाग मिलते थे लेकिन अभी तक उनका जन्मदिन साधारण ढंग से मनाया जाता था. लेकिन इस बार उनका जन्मदिन एक विकास पुरुष के रूप में मनाया गया.

आखिर प्रदेश के विकास का श्रेय किसको दिया जाना चाहिए, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को या शिवपाल को?अखिलेश कहते हैं, "देखिए जो विकास कार्य हो रहे हैं वह सरकार की ज़िम्मेदारी हैं. हालांकि मैं मुख्यमंत्री हूँ. हमारे साथ बहुत से कैबिनेट और राज्य मंत्री भी हैं. सरकार के मुखिया को लाभ मिलता है और सरकार के मुखिया का ही नुक़सान भी होता है. मैं विकास करने में ज़्यादा विश्वास करता हूँ विकास पुरुष बनने में कम. विकास पुरुष बनने कि खुली छूट है, खुला मैदान है."

Posted By: Subhesh Sharma