देश भर के कई इलाक़ों से आदिवासी और किसान दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंच रहे हैं.


एकता परिषद के बैनर तले जमा हुए इन प्रदर्शनकारियों में तमिलनाडु, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार और मध्य प्रदेश सहित देश के लगभग 17 राज्यों से आए किसान और आदिवासी लोग शामिल हैं.कई तरह की विकास परियोजनाओं से विस्थापित हुए इन आदिवासियों और किसानों का आरोप है कि लाखों हेक्टेयर खेतिहर ज़मीन और वन भूमि उद्योगों के लिए अधिग्रहित की गई.उसके बदले में अगर मुआवजा मिला भी वो बिल्कुल 'ऊंट के मुंह में जीरे' जैसा ही था.मध्य प्रदेश के धार जिले के रहने वाले गटिया राम, जो भील जनजाति से ताल्लुक रखते हैं, कहते हैं, "मेरे पास पट्टा है मगर अब वन विभाग के लोग मुझे फसल काटने नहीं देते. अपने पट्टे की ज़मीन पर पौधे भी नहीं लगाने देते."
वो कहते हैं, "फसल लगाने पर या पौधे लगाने पर हम पर वन अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर देते हैं. हम कई पुश्तों से इस ज़मीन पर हैं. मगर आज बेदखल कर दिया गया है. हमारे सामने अब रोज़ी-रोटी का सवाल पैदा हो गया है."


शहडोल से आए मंगल वीर सिंह कहते हैं, "मेरी ज़मीन पर 2008 में बांध बनाया गया, मगर आज तक मुआवजा नहीं मिला है. हम सिंचाई विभाग के अधिकारियों के चक्कर काटते-काटते थक गए हैं. आज मेरे पास जीने खाने का कोई स्रोत नहीं है."मज़दूर बन गए किसानमध्य प्रदेश के ही रहने वाले रवनवास की भी ऐसी ही कहानी है, "वन विभाग ने साल 2000 में हमें अपने गांव से विस्थापित करते समय आश्वासन दिया था कि खेतिहर ज़मीन के बदले हमें अच्छी ज़मीन मिलेगी. मगर उसके बदले उन्होंने बंजर ज़मीन दे दी. अब हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल है कि किस तरह अपने परिवार को चलाएं. हम किसान थे, आज दिहाड़ी मजदूर बन गए हैं."हालात बद से बदतरमंगलवार और बुधवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के मुद्दे के साथ-साथ वन अधिकार के मामले को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में सत्याग्रह का आह्वान किया गया है.इस बीच सोमवार को आन्दोलनकारियों के प्रतिनिधियों के साथ गृह मंत्री राजनाथ सिंह की वार्ता भी हुई है. सरकार का कहना है कि वह 24 घंटों में इन मुद्दों पर अपना पक्ष सामने रखेगी.

Posted By: Satyendra Kumar Singh