इंडिया इंक को बराबरी के अवसर उपलब्ध कराने में अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है. भारतीय कंपनियों में काम कर रहा हर दूसरा कर्मचारी किसी न किसी तरह के भेदभाव का शिकार है. नियुक्ति प्रक्रिया से लेकर ऑफिस में काम के दौरान तक हर जगह वे महसूस करते हैं कि व्यक्तिगत वजहों से उनके बजाय दूसरों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. एक ताजा सर्वे में यह बात सामने आई है.


टीमलीज सर्विसेज का सर्वेटीमलीज सर्विसेज के सर्वे के मुताबिक, इंडिया इंक ढेर सारी नौकरियां पैदा कर रहा है. मगर कंपनियों के अधिकारी और कर्मचारी खुद को भेदभाव से परे रखकर काम नहीं कर पा रहे हैं. सबसे ज्यादा भेदभाव नौकरी देते समय किया जाता है. देश के आठ बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलूर, पुणे और अहमदाबाद में किए गए सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 10 में से पांच कर्मचारी खुद को इसका शिकार मानते हैं. शिक्षा, लिंग और आयु के आधार पर कार्यस्थलों पर भेदभाव किया जा रहा है. इसके मुताबिक, 21 से 35 वर्ष की उम्र के 54 फीसद कर्मचारियों ने बताया कि वह भेदभाव के शिकार हैं. वहीं 50 से ज्यादा उम्र वाले कर्मचारी उतना भेदभाव महसूस नहीं करते. पक्षपात से कंपनी के प्रोडक्शन पर असर
पक्षपात से कंपनी की उत्पादन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है. सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है. गर्भवती महिलाएं और जिनके बच्चे अभी छोटे हैं, वे कई अवसरों से वंचित रह जाती हैं. नियुक्ति प्रक्रिया और प्रमोशन के मौकों पर उनकी जगह किसी अन्य को तरजीह दी जाती है. पुणे और मुंबई ऐसे शहर हैं, जहां खूबसूरती को भी प्राथमिकता दी जाती है. दिल्ली में क्षेत्रीय स्तर पर जबर्दस्त भेदभाव देखा गया.


भेदभावमुक्त कार्यस्थल की करनी चाहिए कोशिशहालांकि, सर्वे में एक सकारात्मक तथ्य भी सामने आया है कि जाति और धर्म के आधार पर पक्षपात तेजी से कम होता जा रहा है. टीमलीज की वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरुभि माथुर गांधी ने बताया कि अब कॉरपोरेट जगत जाति और संप्रदाय से परे उठकर सोच रहा है. मगर अब उन्हें ऐसे कार्यस्थल बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जो हर तरह के भेदभाव से मुक्त हों.  कंपनियों को भेदभाव के खिलाफ न केवल स्पष्ट नीति बनानी चाहिए बल्कि उसे मजबूती के साथ लागू भी करना चाहिए.

Posted By: Satyendra Kumar Singh