भारतीय जनता पार्टी 'गुजरात मॉडल' को विकास का प्रतीक बना कर चुनाव मैदान में है जबकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों का कहना है कि यह मॉडल नक़ली है.


चुनावी शोर में इस मॉडल की ख़ूब चर्चा हो रही है. इसके समर्थक इसके हक़ में सरगर्म हैं तो आलोचक इसे बराबर निशाना बना रहे हैं.इस मॉडल पर बीबीसी संवाददाता पवन सिंह अतुल ने अर्थशास्त्री गुरचरण दास से बात की.मोदी ने गुजरात को जापान बना दिया है. इस दावे में कितना दम है?गुजरात में तरक्की तो बहुत हुई है. उल्लेखनीय यह है कि कृषि के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है. दस साल के दौरान यह प्रगति 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है. यह अभूतपूर्व है.हरित क्रांति के दौरान भी पंजाब-हरियाणा में 10 प्रतिशत विकास दर 10 साल तक नहीं रही थी. सिर्फ़ चीन में छह साल, 1978 से 1984 तक, विकास दर 13 प्रतिशत रही थी.


कृषि के क्षेत्र में इस सफलता को अशोक गुलाटी ने विश्लेषित किया है. यह सफलता इसलिए मिली है क्योंकि गुजरात में पानी और बिजली 24 घंटे मिल रही है.

मोदी के आने से पहले भी गुजरात अन्य राज्यों की तुलना में आगे ही था. सारा श्रेय एक व्यक्ति को देना कितना सही है?एक व्यक्ति को सारा श्रेय नहीं देना चाहिए. लेकिन कृषि क्षेत्र में जो तरक्की हुई है वो 10 साल में ही हुई है.

भारत के किसी राज्य में ऐसा नहीं हुआ. मैं भी यह मानने को तैयार नहीं था जब तक कि अशोक गुलाटी ने मुझे आंकड़े नहीं दिखाए.मुझे यह एक किस्म का विरोधाभास लगता है, क्योंकि मेरा मानना है कि तरक्की होती है तो धीरे-धीरे सारा देश ऊपर बढ़ता है. विकास रिस कर नीचे तक पहुंचता है.मुझे यह समझ नहीं आता कि यह सामाजिक पैमाने क्यों नहीं बढ़े साथ-साथ. यह भी बढ़ने चाहिए थे.क्या गुजरात मॉडल के कथानक को चुनाव के मद्देनज़र चमकाया जा रहा है?नहीं मुझे यह नहीं लगता. गुजरात में बहुत-बहुत तरक्की हुई है.मैं यह भी कहना चाहता हूं कि सिर्फ़ एक व्यक्ति यह नहीं करता, एक पूरी टीम है - पूरा प्रशासन है, जिसने पूरी एकाग्रता के साथ काम किया है.इसलिए इसका श्रेय सिर्फ़ नरेंद्र मोदी को नहीं मिलना चाहिए, उनको भी मिलना चाहिए. मैं यह भी नहीं कहना चाहता कि यह जनसंपर्क वालों का प्रचार भर है.मैं यह मानने के लिए तैयार हूं कि ऐसा हुआ होगा. यह जो संपन्नता आती है इसका फिर से निवेश करना चाहिए मानवीय स्थितियों को सुधारने के लिए वह नहीं हुआ.
मुझे यह भी लगता है कि नरेंद्र मोदी धीरे-धीरे समझदार हो रहे हैं. जैसे-जैसे वह राष्ट्रीय नेता बन रहे हैं - मुझे लगता है उन्हें अब इसका अहसास हो गया है.और गुजरात एकमात्र राज्य है जहां आरटीई (शिक्षा का अधिकार) के नियम बनाए हैं वह परिणाम आधारित हैं. बाकी सभी जगहों में आगत (इनपुट) पर आधारित नियम हैं. और यह बहुत अच्छी बात है.लेकिन विकास को तरक्की से पहले रखने का मतलब है कि गाड़ी को घोड़े के आगे रख दिया जाए.

Posted By: Subhesh Sharma