1932 में अविभाजित भारत में जन्मे मिल्खा सिंह की कहानी जीवट और दृढ़-संकल्प की कहानी है. ऐसा शख़्स जो विभाजन के दंगों में बाल-बाल बचा जिसके परिवार के कई सदस्य उसकी आंखों के सामने क़त्ल कर दिए गए जो ट्रेन में बेटिकट सफ़र करते पकड़ा गया और जेल की सज़ा सुनाई गई और जिसने एक गिलास दूध के लिए सेना की दौड़ में हिस्सा लिया और जो बाद में भारत का सबसे महान एथलीट बना.


सुनिए विस्तार से उस कहानी को सुनिए रेहान फ़ज़ल की ज़ुबानी1960 के रोम ओलंपिक में विश्व रिकॉर्ड तोड़ने के बावजूद मिल्खा सिंह भारत के लिए पदक नहीं जीत पाए और उन्हें चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा. मिल्खा सिंह ने पहली बार विश्व स्तर पर अपनी पहचान तब बनाई, जब कार्डिफ़ राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मैल्कम स्पेंस को 440 गज की दौड़ में हराकर स्वर्ण पदक जीता.पढ़ें रेहान फ़ज़ल की पूरी विवेचनाउस पूरी रात मिल्खा सिंह सो नहीं सके. अगले दिन 440 यार्ड की दौड़ का फ़ाइनल चार बजे था. सुबह मिल्खा ने अपनी नसों को आराम देने के लिए टब में गर्म पानी से स्नान किया, नाश्ता किया और दोबारा कंबल ओढ़कर सोने चले गए. दोपहर उनकी नींद खुली.


मिल्खा कहते हैं कि इससे उनकी थोड़ी हिम्मत बढ़ी. स्टेडियम पहुंचकर वह सीधे ड्रेसिंग रूम गए और फिर लेट गए. लगा कि हल्का सा बुख़ार चढ़ गया है. तभी डॉक्टर हावर्ड फिर आए. उन्होंने उनकी पीठ और पैरों की मसाज की. फिर कहा - मेरे बच्चे, तैयार होना शुरू करो. एक घंटे में तुम्हारी दौड़ शुरू होने वाली है.हावर्ड पिछले कई दिनों से मिल्खा के हर प्रतिद्वंद्वी की तकनीक का जायज़ा ले रहे थे.

पहली हीट के दौरान वो रात में खाने के बाद उनके कमरे में आकर उनके पलंग पर बैठकर अपनी टूटी-फूटी हिंदी में बोले थे- ''मिल्खा हम स्पेंस को 400 गज दौड़ते देखा. वो पहला 300 मीटर स्लो भागता और लास्ट हंडरेड गज में सबको पकड़ता. तुम्हें 400 मीटर नहीं दौड़नी है, 350 मीटर दौड़नी है. समझो कि इतनी लंबी ही रेस है.''मिल्खा बताते हैं, ''440 यार्ड की दौड़ के फ़ाइनल का पहला कॉल तीन बजकर 50 मिनट पर आया. हम छहों लोग स्टार्टिंग लाइन पर जाकर खड़े हो गए. मैंने अपने तौलिये से अपने पैरों का पसीना पोंछा. मैं अपने स्पाइक के फीते बांध ही रहा था कि दूसरी कॉल आई. मैंने अपना ट्रैक सूट उतारा. मेरी वेस्ट पर भारत लिखा हुआ था और उसके नीचे अशोक चक्र बना था. मैंने कुछ लंबी-लंबी सांसें ली और अपने साथी प्रतियोगियों को विश किया.''इंग्लैंड के साल्सबरी पहली लेन में थे. इसके बाद थे दक्षिण अफ़्रीका के स्पेंस और आस्ट्रेलिया के केर, जमैका के गास्पर, कनाडा के टोबैको और छठी लेन में थे भारत के मिल्खा सिंह.सिर्फ़ आधा फ़ीट का फ़र्क

जैसे ही स्टार्टर ने कहा - ऑन यॉर मार्क, मिल्खा ने स्टार्टिंग लाइन के पीछे अपना बांया पैर किया, दाहिने घुटने को बाएं पैर के समानांतर किया और दोनों हाथों से धरती को छुआ.मिल्खा सिंह को स्ट्रेचर से डॉक्टर के पास ले जाया गया, जहां उनको ऑक्सीजन दी गई. जब उन्हें होश आया, तब जाकर उन्हें अहसास होना शुरू हुआ कि उन्होंने कितना बड़ा कारनामा अंजाम दिया है.उनके साथियों ने उन्हें कंधे पर उठा लिया. उन्होंने तिरंगे को अपने जिस्म पर लपेटा और पूरे स्टेडियम का चक्कर लगाया. यह पहला मौका था जब किसी भारतीय ने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था.भारत में छुट्टीजब इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ ने मिल्खा सिंह के गले में स्वर्ण पदक पहनाया और उन्होंने भारतीय झंडे को ऊपर जाते देखा तो उनकी आखों से आंसू बह निकले.उन्होंने देखा कि वीआईपी इन्क्लोजर से एक छोटे बालों वाली, साड़ी पहने एक महिला उनकी तरफ़ दौड़ी चली आ रही हैं. भारतीय टीम के प्रमुख अश्वनी कुमार ने उनका परिचय करवाया. वह ब्रिटेन में भारत की उच्चायुक्त विजयलक्ष्मी पंडित थीं.
मिल्खा सिंह याद करते हैं, ''उन्होंने मुझे गले लगाकर मुबारकबाद दी और कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संदेश भिजवाया है कि इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बाद वह इनाम में क्या लेना चाहेंगे? मेरी समझ नहीं आया कि मैं क्या मांगूं. मेरे मुंह से निकला कि इस जीत की खुशी में पूरे भारत में छुट्टी कर दी जाए. मैं जिस दिन भारत पहुंचा पंडित नेहरू ने अपना वादा निभाया और पूरे देश में छुट्टी घोषित की गई.''फ़्लाइंग सिख बनने की कहानी1960 में मिल्खा सिंह के पास पाकिस्तान से न्योता आया कि वह भारत-पाकिस्तान एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लें. टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने वहां के सर्वश्रेष्ठ धावक अब्दुल ख़ालिक को फ़ोटो फ़िनिश में 200 मीटर की दौड़ में हराया था.पाकिस्तानी चाहते थे कि अब दोनों का मुक़ाबला पाकिस्तान की ज़मीन पर हो. मिल्खा ने पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया क्योंकि विभाजन के समय की कई कड़वी यादें उनके ज़हन में थीं जब उनकी आंखों के सामने उनके पिता को क़त्ल कर दिया गया था.मगर नेहरू के कहने पर मिल्खा पाकिस्तान गए. लाहौर के स्टेडियम में जैसे ही स्टार्टर ने पिस्टल दागी, मिल्खा ने दौड़ना शुरू किया. दर्शक चिल्लाने लगे-पाकिस्तान ज़िंदाबाद..अब्दुल ख़ालिक ज़िंदाबाद..ख़ालिक, मिल्खा से आगे थे लेकिन 100 मीटर पूरा होने से पहले मिल्खा ने उन्हें पकड़ लिया था.
इसके बाद ख़ालिक धीमे पड़ते गए. मिल्खा ने जब टेप को छुआ तो वह ख़ालिक से करीब दस गज आगे थे और उनका समय था 20.7 सेकेंड. ये तब के विश्व रिकॉर्ड की बराबरी थी. जब दौड़ ख़त्म हुई तो ख़ालिक मैदान पर ही लेटकर रोने लगे.मिल्खा उनके पास गए. उनकी पीठ थपथपाई और बोले, ''हार-जीत तो खेल का हिस्सा है. इसे दिल से नहीं लगाना चाहिए.''दौड़ के बाद मिल्खा ने विक्ट्री लैप लगाया. मिल्खा को पदक देते समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति फ़ील्ड-मार्शल अय्यूब खां ने कहा, ''मिल्खा आज तुम दौड़े नहीं, उड़े हो. मैं तुम्हें फ़्लाइंग सिख का ख़िताब देता हूं.''

Posted By: Satyendra Kumar Singh