ग्लेशियर पिघलते रहे तो कोस्टल एरिया की लाइफ पर संकट आ जाएगा

एक्सिस कार्बन डाई ऑक्साइड को धरती में इंजेक्ट किया जाए तो बेहतर

KANPUR : कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण में पूरी दुनिया में ज्यादा हो गई है। इसकी मुख्य वजह इंडस्ट्री का पॉल्यूशन है। वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस 250 पीपीएम होनी चाहिए, जबकि वातावरण में सीओटू 400 पीपीएम के आसपास मौजूद है। यही वजह है कि तापमान लगातार बढ़ रहा है और धरती भी तप रही है। इस टाइम व‌र्ल्ड में सबसे ज्यादा सीओटू चाइना में है इसके बाद यूएस का नंबर फिर इंडिया तीसरे नंबर है। इंडिया डेवलपिंग कंट्री की केटेगिरी में खड़ा है इसलिए इंडस्ट्री को बंद नहीं कराया जा सकता है। बेहतर यह है कि सीओटू को जमीन में दफन कर दिया जाए। यह जानकारी आईआईटी में टॉक देने आए अर्थ साइंस के एक्सपर्ट पद्मश्री डॉ। वीपी ढिमरी ने दैनिक जागरण आईनेक्स्ट से स्पेशल बातचीत में दी।

पथरीले एरिया में इंजेक्ट कर सकते हैं

जमीन के अंदर ऐसी कंडीशन होनी चाहिए कि एक बार इंजेक्ट होने के बाद यह गैस बाहर न निकलने पाए। इंडिया में सीओटू को महाराष्ट्र से लेकर जबलपुर तक इंजेक्ट किया जा सकता है। यह वह एरिया हैं जहां पर जमीन में एक किमी की थिकनेस वाला काला पत्थर है। यह एरिया करीब 5000000 स्क्वायर मीटर का है। हालांकि इसके लिए बाकायदा मानीटरिंग करनी पड़ेगी। इंजेक्ट करने के बाद 4 डी सेसमिक टेक्नोलॉजी से इसकी मानीटरिंग हर पांच व दस साल में करनी पड़ेगी।

गाढ़ा क्रूड ऑयल सीओटू टेक्निक से

एनजीआरआई से रिटायर होने के बाद होमी भाभा चेयर प्रोफेसर हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रो। वीपी ढिमरी ने बताया कि कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का प्रयोग क्रूड ऑयल को निकालने में किया जा सकता है। कनाडा व नार्वे में इस टेक्निक से क्रूड ऑयल निकाला जा रहा है। पूरी दुनिया में करीब 50 परसेंट क्रूड ऑयल गाढ़ा है जिसको इस टेक्निक से आसानी से जमीन से बाहर लाया जा रहा है। सीओटू को कोयले में डालने पर कोल बेड मीथेन बनाया जाता है। यह भी एनर्जी का एक रिसोर्स हो सकता है। इंडिया में अभी इंजेक्ट नहीं किया गया है वेस्टर्न व‌र्ल्ड इस तरह के प्रयोग कर रहा है। जिस स्पीड से ग्लेशियर पिघल रहे हैं वह कोस्टल एरिया में रहने वालों के लिए आने वाले टाइम में खतरनाक साबित हो सकता है। इंडिया में करीब 30 करोड़ लोग कोस्टल एरिया में रह रहे हैं। ऐसी कंडीशन में उन्हें मूव करना पड़ेगा।

Posted By: Inextlive