लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले भाषण की ख़ास बात यह थी कि लंबे अरसे बाद एक अच्छा भाषण सुनने को मिला.


ख़ासकर पिछले 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को सुनने के बाद तो यह भाषण शानदार लगता है.लेकिन पिछले कई प्रधानमंत्रियों के इतर मोदी के भाषण में कई तरह के छुपे हुए संकेत भी हैं.अंकुश रखने की इच्छा, एकाधिकार की चाह के संकेत जो मोदी की कार्यशैली में अभी से दिखने लगे हैं.अपनी इस ख़ासियत से मोदी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नज़दीक पहुंच जाते हैं.पढ़िए मधुकर उपाध्याय का पूरा लेखप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक लालकिले से अपने पहले भाषण में वही साबित किया जो करने की उन्हें कोई ज़रूरत नहीं थी.यह अब तक देश के सबसे अच्छे और प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों से भिन्न था.वाजपेयी के भाषण में लय, ज्ञेयता और कविताई थी, जो मोदी के भाषण में ग़ायब थी.


वाजपेयी दिल को छू लेते थे तो मोदी दिल के साथ जेब भी छूते हैं. व्यापार का महत्व वह अच्छी तरह समझते हैं ख़ासकर नए वैश्विक परिवेश में.यह वाजपेयी से एक कदम आगे है या पीछे, बाद में तय होगा.सुना है पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू दिल से बोलते थे, लाल बहादुर शास्त्री भी. इंदिरा गांधी दिल से ज़्य़ादा दिमाग़ का इस्तेमाल करती थीं.

अगर प्रधानमंत्री के भाषण के संकेतों को देखा जाए तो एक संकेत बहुत साफ़ था और उसकी झलक दो बार अलग-अलग संदर्भों में देखने को मिली.पहली जब मोदी ने 'लड़कियों से कहां जाओगी, कब आओगी' जैसे सवालों का ज़िक्र किया और कहा कि यही सवाल लड़कों से क्यों नहीं पूछे जाते.उन पर मां-बाप अंकुश रखें तो बलात्कार और आतंकवादी हिंसा जैसी घटनाएं न हों. वह सब पर अंकुश चाहते हैं.दूसरी झलक में वह ख़ुद को दिल्ली में बाहरी बताते हैं. कहते हैं कि अंदर से देखा तो पाया कि यहां एक सरकार के अंदर कई सरकारें चलती हैं.अदालतों में मुक़दमे होते हैं जो देश के लिए क़तई ठीक नहीं हैं. इससे मोदी की एकाधिकारवादी मनोवृत्ति दिखाई देती है.यह छवि अख़बारों और सोशल मीडिया में प्रसारित उस छवि का विस्तार लगती है जिसमें अपने सांसदों से बात करते हुए मोदी डेढ़ फुट ऊंचे मंच पर बैठते हैं.बाक़ी सब नीचे रखी कुर्सियों पर. लोकतंत्र का मान्य सिद्धांत प्रधानमंत्री को कोई ऊंचा आसन नहीं देता बल्कि उन्हें 'फर्स्ट अमंग इक्वल' मानता है.

इस सिद्धांत के टूटने की पहली घटना इंदिरा गांधी के काल में हुई थी, जिन्हें 'ओनली मैन इन हर कैबिनेट', कहा जाने लगा था. लेकिन इस बार जो हो रहा है, उसे क्या कहेंगे?

Posted By: Satyendra Kumar Singh