पिछले कुछ महीनों से चीन ब्राज़ील और यूरोप में मांग कम होने और आपूर्ति बढ़ने के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम अचानक से गिरने लगे हैं.


तेल की आपूर्ति बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण अमरीकी शेल तेल भी है.यह एक विशेष किस्म का तेल है जिसे शीस्ट चट्टानों में हाइड्रोजिनेशन, पायरोलाइसिस और ताप विघटन से बनाया जाता है.यही वजह है कि कच्चे तेल की क़ीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल से नीचे गिर गई हैं.फ़ायदापिछले साल केरोसीन तेल और गैस पर 24 बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी गई थीं.अब यह सब्सिडी कम होनी चाहिए जिससे सरकार का वित्तीय घाटा भी कम होगा.तेल की क़ीमत कम होने से मुद्रा स्फीति भी तो कम हो गई है लेकिन सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स बढ़ा दिया है.इसलिए ग्राहकों को इससे बहुत फ़ायदा नहीं हो पा रहा है.माल भाड़े में कमी के कारण फलों और सब्जियों के दाम जरूर कुछ कम हुए हैं.आर्थिक संकट


घरेलू गैस के दाम पर पहले से ही सब्सिडी मिली हुई है लेकिन इसकी खुदरा क़ीमत कम नहीं हुई.तेल की क़ीमतों में कमी कई देशों में अर्थव्यवस्था के चरमराने के संकेत भी है.भारत जैसे बड़े आयातक देश के लिए यह एक बुरी ख़बर भी है.

अगर अमरीका और रूस जैसे तेल उत्पादक देश आर्थिक संकट से गुजरेंगे तो वे उत्पादों की कम क़ीमत लगाएंगे.इसमें भारत जैसे देशों में बने उत्पाद भी शामिल होंगे.

Posted By: Satyendra Kumar Singh