अक्टूबर 2013 में जब शी जिनपिंग की नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात हुई तो चीनी राष्ट्रपति नेता ने भारतीय प्रधानमंत्री से कहा कि जिस तरह की कड़ी मेहनत से दोनों इस मुक़ाम तक पहुंचे हैं उसमें काफ़ी समानताएं हैं.


अनुशासित राजनीतिक प्रशिक्षण के मामले में भी दोनों में काफ़ी समानता है. एक का प्रशिक्षण कम्युनिस्ट कैडर के रूप में और दूसरे का एक दक्षिणपंथी संगठन और पार्टी में एक कार्यकर्ता के रूप में हुआ है.जिंदगी और काम के प्रति 'सबकुछ संभव है' का नज़रिया रखने वाले इन दोनों नेताओं को बहुमुखी और ताक़तवर नेता माना जाता है.इनमें से एक भ्रष्टाचार विरोधी सख़्त अभियान चला रहे हैं और दूसरा विकास के उस एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है, जिसका वादा कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता तक पहुंची है.लेकिन इन दोनों नेताओं में काफ़ी अंतर भी हैं.पढ़िए विस्तार सेउन्हें इस बात पर गर्व होता है कि वो कभी 'चायवाला' थे. उनके जीवन का यह एक ऐसा पहलू है, जिसे उन्होंने जनता के साथ असरदार संवाद के लिए इस्तेमाल किया.


इससे ऐसा संदेश जाता है कि रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते हुए उन्होंने अच्छे और बुरे दोनों ही तरह के लोगों से निपटने का हुनर सीखा.अनुशासित दिनचर्या के लिए चर्चित होने के नाते, यह संभव है कि मोदी ने खुद पर सख़्त नियंत्रण रखने की कला आरएसएस की शाखाओं में सीखी हो.

हालांकि, आरएसएस में इतने सालों तक खाक़ी हाफ़ पैंट पहनते हुए, उन्हें फैंसी कपड़े पहनने का शौक कैसे पैदा हुआ, यह एक रहस्य है.यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि मोदी दशकों तक आरएसएस के कैडर के रूप में प्रशिक्षण लेने वाली बात पर उतना जोर नहीं देते हैं जितना वो कभी अपने 'चायवाला' होने पर देते हैं.विवाहमोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी पत्नी के रूप में जशोदाबेन का ज़िक्र किया था.दूसरी तरफ़, कुछ साल पहले तक मोदी की वैवाहिक स्थिति पता नहीं थी. वे खुद को अविवाहित जैसा ही दिखाते थे.अब यह पता चल चुका है कि उनकी शादी हुई थी और इसके कुछ दिनों बाद ही उन्होंने घर छोड़ दिया था.उनके भाई ने बताया है कि वो शादी के बंधन से इसलिए निकल गए क्योंकि ज़िंदगी में उनका उद्देश्य बहुत ऊंचा था.राजनीतिक प्रशिक्षणनरेंद्र मोदी 1971 और उससे पहले अपने पिता और चाचा की चाय की दुकान पर काम काम करते थे. इसके साथ ही वो आरएसएस से भी जुड़ रहे. उस साल वो आरएसएस के फुल टाइम प्रचारक बन गए.

उनकी संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए आरएसएस ने उन्हें 1985 में भारतीय जनता पार्टी में भेज दिया. उन्होंने लालकृष्ण अडवाणी की अयोध्या रथ यात्रा की ज़िम्मेदारी गुजरात में अच्छी तरह निभाई. इसके बाद उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया.मोदी की संगठनात्मक क्षमता के कारण 1998 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया. इससे गुजरात में उनकी पहचान बनती गई. पार्टी में वो आडवाणी के करीब नेताओं में शुमार होने लगे. भाजपा ने 2001 में उस समय के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया.इसके अगले साल फरवरी में गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए. इससे उनकी छवि खराब हुई. लेकिन उसी साल हुई विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी जीत मिली. इसका श्रेय मोदी को दिया गया और वो मुख्यमंत्री पद पर बने रहे.इसके बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में भी भाजपा की भारी विजय हुई. पार्टी ने 2013 में उन्हें आम चुनाव के प्रचार का कमान दी गई. उनके नेतृत्व में भाजपा ने 2014 के चुनाव में भारी जीत दर्ज की और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी.बड़ा सवालसबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या दोनों नेता एक 'एशियाई ताक़त' बनने के लिए साथ आएंगे?चीन के जानकारों के मुताबिक़, 'यह ताक़त' अमरीका को चुनौती देने के लिए पर्याप्त होगी.
हालांकि दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा और अन्य विवादों पर सहमति की राह आसान नहीं है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh